Book Title: Agam 14 Upang 03 Jivabhigam Sutra Part 01 Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni, Rajendramuni, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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प्रथम प्रतिपत्ति: देवों का वर्णन]
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जो अज्ञानी हैं, वे दो अज्ञान वाले भी हैं और तीन अज्ञान वाले भी हैं। जो दो अज्ञान वाले हैं, वे मति-अज्ञानी और श्रुत-अज्ञानी हैं। जो तीन अज्ञान वाले हैं वे मति-अज्ञानी, श्रुत-अज्ञानी और विभंगज्ञानी हैं।
योगद्वार-मनुष्य मनयोगी, वचनयोगी, काययोगी भी है और अयोगी भी है। शैलेशी अवस्था मं अयोगित्व है।
उपयोगद्वार और आहारद्वार द्वीन्द्रियों की तरह जानना।
उपपातद्वरा-सातवीं नरक को छोड़कर शेष सब स्थानों से मनुष्यों में जन्म हो सकता है। सातवीं नरक का नैरयिक मनुष्य नहीं होता। सिद्धान्त में कहा गया हैं कि-सप्तमपृथ्वी नैरयिक, तेजस्काय, वायुकाय और असंख्य वर्षायु वाले अनन्तर उद्वर्तित होकर मनुष्य नहीं होते।
स्थितिद्वार-मनुष्यों की जघन्य स्थिति अन्तर्मुहूर्त और उत्कृष्ट तीन पल्योपम की है।
समवहतद्वार-मनुष्य मारणांतिक समुद्घात से समवहत होकर भी मरते हैं और असमवहत होकर भी मरते हैं।
. उद्वर्तनाद्वार-ये सब नारकों में, सब तिर्यंचों में, सब मनुष्यों में और सब अनुत्तरोपपातिक देवों तक उत्पन्न होते हैं और कोई सब कर्मों से मुक्त होकर सिद्ध-बुद्ध हो जाते हैं और निर्वाण को प्राप्त कर सब दुःखों का अन्त कर देते हैं।
गति-आगतिद्वार-मनुष्य पांच गतियों में (सिद्धगति सहित) जाने वाले और चार गतियों से आने वाले हैं। हे आयुष्मन् श्रमण ! ये प्रत्येकशरीरी हैं और संख्येय हैं। मनुष्यों की संख्या संख्येय कोटी प्रमाण है।
इस प्रकार मनुष्यों का कथन सम्पूर्ण हुआ। देवों का वर्णन
४२. से किं तं देवा? देवा चउव्विहा पण्णत्ता, तं जहाभवणवासी, वाणमंतरा, जोइसिया, वेमाणिया। से किं तं भवणवासी? भवणवासी दसविहा पण्णत्ता, तं जहाअसुरा जाव थणिया। से तं भवणवासी। से किं तं वाणमंतरा?
देवभेदो सव्वो भाणियव्वो जाव ते दुविहा पण्णत्ता, तं जहा-पज्जत्ता य अपजताय। तओ सरीरगा-वेउव्विए, तेयए, कम्मए।ओगाहणा दुविहा-भवधारणिज्जा य उत्तरवेउव्विया
य।
तत्थं णं जा सा भवधारणिज्जा सा जहन्नेणं अंगुलस्स असंखेज्जइभागं उक्कोसेणं सत्त