Book Title: Agam 14 Upang 03 Jivabhigam Sutra Part 01 Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni, Rajendramuni, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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द्वितीय प्रतिपत्ति: स्त्रियों का वर्णन]
की अभिलाषा)।
पुरुषवेद - जिस कर्म के उदय से स्त्री के साथ रमण करने की इच्छा हो उसे पुरुषवेद कहते हैं । पुरुषवेद का बाह्य चिह्न लिंग, श्मश्रु केश आदि हैं। पुरुष में कठोर भाव की प्रधानता होती है अतः उसे कोमल तत्त्व की अपेक्षा रहती है । पुरुषवेद का विकार तृण की अग्नि के समान है जो शीघ्र प्रदीप्त हो जाती और शीघ्र शान्त हो जाती है। स्थूल दृष्टि से पुरुष के सात लक्षण कहे गये हैं - १ मेहन (लिंग), २ कठोरता, ३ दृढता, ४ शूरता, ५ श्मश्रु (दाढ़ी-मूंछ ), ६ धीरता और ७ स्त्रीकामिता ।
२
१
नपुंसकवेद - स्त्री और पुरुष दोनों के साथ रमण करने की अभिलाषा जिस कर्म के उदय से हो वह नपुंसकवेद है। नपुंसक में स्त्री और पुरुष दोनों के मिले-जुले भाव होते हैं। नपुंसक की कामाग्नि नगरदाह या दावानल के समान होती है। जो बहुत देर से शान्त होती है। नपुंसक में स्त्री और पुरुष दोनों के चिन्हों सम्मिश्रण होता हैं । नपुंसक में दोनों - मृदुत्व और कठोरत्व का मिश्रण होने से उसे दोनों - स्त्री और पुरुष की अपेक्षा रहती है।
नारक जीव नपुंसकवेद वाले ही होते हैं। एकेन्द्रिय से लेकर चतुरिन्द्रिय जीव और असंज्ञी पंचेन्द्रिय नपुंसकवेद वाले ही होते हैं। सब संमूर्छिम जीव नपुंसकवेदी होते हैं। गर्भज तिर्यंच और गर्भज मनुष्यों में तीनों वेद पाये जाते हैं। देवों में स्त्रीवेद और पुरुषवेद ही होता है, नपुंसकवेद नहीं होता । उक्त तीनों वेदों में सब संसारी जीवों का समावेश हो जाता हैं। वेदमोहनीय की उपशमदशा में उसकी सत्ता मात्र रहती है, उदय नहीं रहता । वेद का सर्वथा क्षय होने पर अवेदी अवस्था प्राप्त हो जाती है ।
स्त्रियों का वर्णन
४५. [ १ ] से किं तं इत्थीओ ?
इत्थीओ तिविहाओ पण्णत्ताओ, तं जहा
१.
तिरिक्खजोणियाओ, २ मणुस्सित्थीओ, ३. देवित्थिओ | से किं तं तिरिक्खजोणिणित्थीओ ? तिरिक्खजोणिणित्थीओ तिविहाओ पण्णत्ताओ, तं जहा१. जलयरीओ, २. थलयरीओ, ३. खहयरीओ। से किं तं जलयरीओ ? जलयरीओं पंचविहाओ पण्णत्ताओ, तं जहा
[११५
१. योनिर्मृदुत्वमस्थैर्य मुग्धताऽबलता स्तनौ । पुंस्कामितेति चिह्नानि सप्त स्त्रीत्वे प्रचक्षते ॥ २. मेहनं खरता दादयं, शौण्डीर्य श्मश्रु धृष्टता । स्त्रीकामितेति लिंगानि सप्त पुंस्त्वे प्रचक्षते ॥ ३. स्तनादिश्मश्रुकेशादि भावाभावसमन्वितं । नपुंसकं बुधा प्राहुर्मोहानलसुदीपितम् ॥
- मलयगिरिवृत्ति
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