Book Title: Agam 14 Upang 03 Jivabhigam Sutra Part 01 Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni, Rajendramuni, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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६६]
[जीवाजीवाभिगमसूत्र
यथा-द्वीन्द्रिय, त्रीन्द्रिय, चतुरिन्द्रिय और पंचेन्द्रिय।
विवेचन-'औदारिक त्रस' पद में दिया गया औदारिक' पद गतित्रस का व्यवच्छेदक है। तेजस्काय और वायुकाय रूप गतित्रस से भिन्नता बताने के लिए 'ओराला तसा' कहा गया है। औदारिक का अर्थ हैस्थूल, प्रधान । मुख्यतया द्वीन्द्रियादि जीव ही त्रस रूप से विवक्षित हैं, अतएव ये औदारिक त्रस कहलाते हैं। ये चार प्रकार के हैं-द्वीन्द्रिय, त्रीन्द्रिय, चतुरिन्द्रिय और पंचेन्द्रिय।
द्वीन्द्रिय-जिन जीवों के स्पर्शन और रसना रूप दो इन्द्रियाँ हों, वे द्वीन्द्रिय हैं। त्रीन्द्रिय-जिन जीवों के स्पर्शन, रसना और घ्राण रूप तीन इन्द्रियाँ हों, वे त्रीन्द्रिय हैं। चतुरिन्द्रिय-जिन जीवों के स्पर्शन, रसना, घ्राण और चक्षु रूप चार इन्द्रियाँ हों, वे चतुरिन्द्रिय हैं।
पंचेन्द्रिय-जिन जीवों के स्पर्शन, रसना, घ्राण, चक्षु और श्रोत्र रूप पाँच इन्द्रियाँ हों, वे पंचेन्द्रिय जीव हैं।
पूर्व में कहा जा चुका है कि इन्द्रियों का यह विभाग द्रव्येन्द्रियों को लेकर है, भावेन्द्रियों की अपेक्षा
से नहीं।
द्वीन्द्रिय-वर्णन
२८. से किं तं बेइंदिया ? बेइंदिया अणेगविहा पण्णत्ता, तं जहापुलाकिमिआ जाव समुहलिक्खा। जे यावण्णे तहप्पगारा; ते समासओ दुविहा पण्णत्ता, तं जहापज्जत्ता य अपज्जत्ता य । तेसिंणं भंते ! जीवाणं कति सरीरगा पण्णत्ता? गोयमा ! तओ सरीरगा पण्णत्ताओरालिए, तेयए, कम्मए। तेसिंणं भंते ! जीवाणं केमहालिया सरीरोगाहणा पण्णत्ता? जहन्नेणं अंगुलासंखेज्जभागं उक्कोसेणं बारसजोयणाई।
छेवदृसंघयणा, हुंडसंठिया, चत्तारि कसाया, चत्तारि सण्णाओ, तिण्णि लेसाओ, दो इंदिया, तओ समुग्घाया-वेयणा, कसाय, मारणंतिया, नो सन्नी असन्नी णपुंसकवेदगा, पंच पज्जत्तीओ, पंचअपज्जत्तीओ, सम्मदिट्ठी वि, मिच्छादिट्ठी वि, णो सम्ममिच्छादिट्ठी; णोओहिदसणी, णो चक्खुदंसणी अचक्खुदंसणी, णो केवलदंसणी।
ते णं भंते ! जीव किं णाणी, अण्णाणी ? गोयमा! णाणी वि अण्णाणी वि। जे णाणी ते णियमा दुण्णाणी, तं जहा