Book Title: Agam 14 Upang 03 Jivabhigam Sutra Part 01 Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni, Rajendramuni, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti
View full book text
________________
प्रथम प्रतिपत्ति: औदारिक त्रसों का वर्णन]
उत्कालिकावात - तेज आंधियों से मिश्रित हवा |
मण्डलिकावात - चक्करदार हवाओं से आरंभ होकर तेज आंधियों से मिश्रित हवा |
गुंजावात - सनसनाती हुई हवा |
झंझावात - वर्षा के साथ चलने वाला अंधड़ अथवा अशुभ एवं कठोर हवा ।
संवर्तकवात — तिनके आदि उड़ा ले जाने वाली हवा अथवा प्रलयकाल में चलने वाली हवा |
घनवात - रत्नप्रभापृथ्वी आदि के नीचे रही हुई सघन - ठोस वायु ।
तनुवात - घनवात के नीचे रही हुई पतली वायु ।
शुद्धवात - मन्दवायु अथवा मशकादि में भरी हुई वायु ।
इसके अतिरिक्त भी अन्य इसी प्रकार की हवाएँ बादर वायुकाय हैं।
[६५
ये बादर वायुकायिक जीव दो प्रकार के हैं - पर्याप्त और अपर्याप्त । अपर्याप्त जीवों के शरीर के वर्णादि पूरी तरह संप्रकट नहीं होते हैं, अतएव विशिष्ट वर्णादि की अपेक्षा उनके भेद नहीं किये गये हैं। जो पर्याप्त जीव हैं उनके वर्णादि संप्रकट होते हैं, अतएव विशिष्ट वर्णादि की अपेक्षा उनके हजारों प्रकार हो जाते हैं । इनकी साल लाख योनियाँ हैं। एक पर्याप्त वायुकाय जीव की निश्रा में नियम से असंख्यात अपर्याप्त वायुकाय के जीव उत्पन्न होते हैं ।
शरीर आदि २३ द्वारों की विचारणा में इन बादर वायुकायिक जीवों के चार शरीर होते हैं- औदारिक, वैक्रिय, तैजस और कार्मण । समुद्घात चार होते हैं - वैकियसमुद्घात, वेदनासमुद्घात, कषायसमुद्घात और मारणांतिकसमुद्घात । स्थितिद्वार में जघन्य से अन्तर्मुहूर्त और उत्कृष्ट से तीन हजार वर्ष की स्थिति जाननी चाहिए। आहार निर्व्याघात हो तो छहों दिशा के पुद्गलों का होता है और व्याघात की स्थिति में कभी तीन, कभी चार, और कभी पाँच दिशाओं के पुद्गलों का होता है। लोकनिष्कृट (लोक के किनारे) में भी बादर वायुकाय की संभावना है, अतएव व्याघात की स्थिति बन सकती है। शेष द्वार सूक्ष्म वायुकाय की तरह जानने चाहिए ।
उपसंहार करते हुए कहा गया है कि हे आयुष्मन् श्रमण ! ये जीव एक तिर्यंचगति में ही जाने वाले और तिर्यंच, मनुष्य इन दो गतियों से आने वाले हैं। ये प्रत्येकशरीरी हैं और असंख्यात लोकाकाश में प्रदेश प्रमाण हैं । यह वायुकाय का कथन पूरा हुआ। औदारिक त्रसों का वर्णन
२७. से किं तं ओराला तसा पाणा ?
ओराला तसा पाणा चउव्विहा पण्णत्ता, तं जहाबेदिया, इंदिया, चउरिंदिया, पंचेंदिया ।
[२७] औदारिक त्रस प्राणी किसे कहते हैं ? औदारिक त्रस प्राणी चार प्रकार के कहे गये हैं,