Book Title: Agam 14 Upang 03 Jivabhigam Sutra Part 01 Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni, Rajendramuni, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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प्रथम प्रतिपत्ति: चतुरिन्द्रियों का कथन ]
[२९] त्रीन्द्रिय जीव कौन हैं ? त्रीन्द्रिय जीव अनेक प्रकार के कहे गये है, यथाऔपयिक, रोहिणीक, यावत् हस्तिशौण्ड और अन्य भी इसी प्रकार के त्रीन्द्रिय जीव ।
ये संक्षेप में दो प्रकार के हैं - पर्याप्त और अपर्याप्त। इसी तरह वह सब कथन करना चाहिए जो द्वन्द्रियों के लिए कहा गया है। विशेषता यह है कि त्रीन्द्रिय जीवों की उत्कृष्ट शरीरावगाहना तीन कोस की है, उनके तीन इन्द्रियाँ हैं, जघन्य अन्तर्मुहूर्त और उत्कृष्ट उनपचास रात-दिन की स्थिति है । और सब वैसे ही कहना चाहिए यावत् वे दो गतिवाले, दो आगतिवाले, प्रत्येकशरीरी और असंख्यात कहे गये हैं । यह त्रीन्द्रियों का कथन हुआ ।
विवेचन - स्पर्शन, रसन और घ्राण- ये तीन इन्द्रियाँ जिन जीवों को होती हैं वे त्रीन्द्रिय जीव हैं। उनके कई प्रकार हैं। प्रज्ञापनासूत्र में उनके भेद इस प्रकार गिनाये गये हैं—
औपयिक, रोहिणीक, कंथु (कुंथुआ), पिपीलिका, (चींटी), उद्देशक, उद्देहिका, (उदई - दीमक ), उत्कलिक, उत्पाद, उत्कट, तृणाहार, काष्ठाहार (घुन), मालुक, पत्राहार, तृणवृन्तिक, पत्रवृन्तिक, पुष्पवृन्तिक, फलवृन्तिक, बीजवृन्तिक, तेंदुरणमज्जिक, त्रपुषभिंजिक, कार्पासस्थिभिंजक, हिल्लिक, झिल्लिक, झिंगिर (झींगुर), किगिरिट, बाहुक, लघुक, सुभग, सौवस्तिक, शुकवृत्त, इन्द्रकायिक, इन्द्रगोपक (इन्द्रगोप - रेशमी कीड़ा), उरुलुंचक, कुस्थवाहक, यूका (जूँ), हालाहल, पिशुक (पिस्सु या खटमल), शतपादिका ( गजाई), गोम्ही ( कानखजूरा) और हस्तिशौण्ड ।
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उक्त त्रीन्द्रिय जीवों के प्रकारों में कुछ तो प्रसिद्ध हैं ही। शेष देशविदेश या सम्प्रदाय से जानने चाहिए।
. ये त्रीन्द्रिय जीव पर्याप्त - अपर्याप्त के भेद से दो प्रकार के हैं इत्यादि सब कथन पूर्वोक्त द्वीन्द्रिय जीवों के समान जानना चाहिए। तेवीस द्वारों में भी वही कथन करना चाहिए केवल जो अन्तर है वह इस प्रकार
शरीर की अवगाहना - त्रीन्द्रियों की शरीर की अहगाहना उत्कृष्ट तीन कोस की है। इन्द्रियद्वार- - इन जीवों के तीन इन्द्रियाँ होती हैं ?
स्थितिद्वार - इनकी स्थिति जघन्य से अन्तर्मुहूर्त और उत्कृष्ट उनपचास रात-दिन की है।
शेष वही कथन करना चाहिए यावत् वे दो गति और दो आगति वाले हैं, प्रत्येकशरीरी हैं और असंख्यात हैं। इनकी आठ लाख कुलकोडी हैं ।
यह त्रीन्द्रियों का कथन हुआ ।
चतुरिन्द्रयों का कथन
३०. से किं तं चउरिंदिआ ?