Book Title: Agam 14 Upang 03 Jivabhigam Sutra Part 01 Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni, Rajendramuni, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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[जीवाजीवाभिगमसूत्र
काले, नीले, लाल, पीले और सफेद वर्ण वाले पुद्गलों को ग्रहण करते हैं । यह कथन व्यवहारनय की अपेक्षा से जानना चाहिए। व्यवहारदृष्टि से ही एक वर्ण वाले, दो वर्ण वाले आदि व्यवहार होता है । अन्यथा निश्चयनय की अपेक्षा से तो छोटे से छोटे अनन्तप्रदेशी स्कन्ध में पांचों वर्ण पाये जाते हैं। कृष्ण आदि प्रतिनियत वर्ण में भी तरतमता पाई जाती है अतएव प्रश्न किया गया कि सूक्ष्म पृथ्वीकायिक जीव जिन काले वर्ण वाले पुद्गलों को ग्रहण करते हैं वे एकगुण काले होते हैं यावत् दस गुण काले होते हैं, संख्यातगुण काले होते हैं, असंख्यातगुण काले होते हैं या अनन्तगुण काले होते हैं ? उत्तर दिया गया कि एकगुण काले यावत् अनन्तगुण काले पुद्गलस्कंधों को ग्रहण करते हैं ।
इसी प्रकार दो गंध और पांच रस के विषय में भी समझ लेना चाहिए ।
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स्पर्श की अपेक्षा से एक स्पर्श वाले, दो स्पर्श वाले, तीन स्पर्श वाले पुद्गलों का ग्रहण नहीं करते किन्तु चार स्पर्श वाले, पांच स्पर्श वाले, यावत् आठ स्पर्श वाले पुद्गलों को ग्रहण करते हैं । भेदमार्गणा लेकर कर्कश यावत् रूक्ष का आहार करते हैं । कर्कश आदि स्पर्शो में एकगुण कर्कश यावत अनन्तगुण कर्कश का ग्रहण करते हैं । इसी तरह आठों स्पर्श के विषय में समझ लेना चाहिए ।
वे सूक्ष्म पृथ्वीकायिक जीव जिन वर्ण, गंध, रस और स्पर्श वाले पुद्गलस्कन्धों को ग्रहण करते हैं वे आत्मप्रदेशों के साथ स्पृष्ट (छुए हुए) होते हैं। अस्पृष्ट पुद्गलस्कंधों का ग्रहण नहीं होता । जो पुद्गलस्कन्ध आत्मप्रदेशों में अवगाढ होते हैं, उन्हें ही वे ग्रहण करते हैं, अनवगाढ को नहीं । स्पर्श अवगाहक्षेत्र के बाहर भी हो सकता है जबकि अवगाहन उसी क्षेत्र में होता हैं । अतः अलगअलग प्रश्न और उत्तर दिये गये हैं ।
अवगाढ पुद्गलस्कन्ध दो प्रकार के हैं - अनन्तरावगाढ और परम्परावगाढ। जिन आत्मप्रदेशों में जो व्यवधानरहित होकर रहे हुए हैं वे अनन्तरावगाढ हैं और जो एक-दो-तीन आदि प्रदेशों के व्यवधान से रहे हुए हैं वे परम्परावगाढ हैं। सूक्ष्म पृथ्वीकायिक जीव अनन्तरावगाढ पुद्गलों को ग्रहण करते हैं, परंपरावगाढ को नहीं ।
ये अनन्तरावगाढ पुद्गल अणुरूप (थोड़े प्रदेश वाले) भी होते हैं और बादर ( विपुल प्रदेश वाले) रूप भी होते हैं। ये सूक्ष्म पृथ्वीकायिक जीव दोनों प्रकार के पुद्गलों को ग्रहण करते हैं।
वह पृथ्वीकायिक जीव जितने क्षेत्र में अवगाढ है उस क्षेत्र में ही वह ऊर्ध्व या तिर्यक् स्थित प्रदेशों को ग्रहण करता है । जिस अन्तर्मुहूर्त प्रमाणकाल में वह जीव उपभोगयोग्य द्रव्यों को ग्रहण करता है वह उस अन्तर्मुहूर्त काल के आदि में, मध्य में, और अन्त में भी ग्रहण करता है ।
सूक्ष्म पृथ्वीकायिक जीव अपने लिए उचित आहारयोग्य पुद्गलस्कंधों को ग्रहण करते हैं, अपने लिए अनुचित को ग्रहण नहीं करते ।
ये सूक्ष्म पृथ्वीकायिक जीव स्वविषय पुद्गलों को भी आनुपूर्वी से ग्रहण करते हैं, अनानुपूर्वी से नहीं ।