Book Title: Agam 14 Upang 03 Jivabhigam Sutra Part 01 Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni, Rajendramuni, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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[जीवाजीवाभिगमसूत्र
ही हैं। अगले भव की आयु बांधे बिना कोई जीव मरता नहीं और अगले भव की आयु उक्त तीन पर्याप्तियों के पूर्ण होने पर ही बंधती है।
१३. दृष्टिद्वार-दृष्टि का अर्थ है जिनप्रणीत वस्तुतत्त्व की प्रतिपत्ति (स्वीकृति)। दृष्टि तीन प्रकार की है-१. सम्यग्दृष्टि, २. मिथ्यादृष्टि और ३. सम्यग्मिथ्या (मिश्र) दृष्टि। जिनप्रणीत वस्तुतत्त्व की सहीसही प्रतिपत्ति सम्यग्दृष्टि है। जिनप्रणीत वस्तुतत्त्व की विपरीत प्रतिपत्ति मिथ्यादृष्टि है। जैसे जिस व्यक्ति ने धतूरा खाया हो उसे सफेद वस्तु पीली प्रतीत होती है, इसी तरह जिसे जिनप्रणीत तत्त्व मिथ्या लगता हो और जो उस पर अरुचि करता हो वह मिथ्यादृष्टि है। जो दृष्टि न तो सम्यग् हो औन न मिथ्या ही हो, ऐसी दृष्टि मिश्रदृष्टि है।
सूक्ष्म पृथ्वीकायिक जीव उक्त तीन दृष्टियों में से मिथ्यादृष्टि वाले हैं। उनमें सम्यग्दृष्टि नहीं होती। सास्वादनसम्यक्त्व भी उनमें नहीं पाया जाता। सास्वादनसम्यक्त्व वाले भी उनमें उत्पन्न नहीं होते। सदा अतिसंक्लिष्ट परिणाम वाले होने से मिश्रदृष्टि भी उनमें नहीं पाई जाती। न मिश्रदृष्टि वाला उनमें उत्पन्न होता है। क्योंकि मिश्रदृष्टि में कोई काल नहीं करता।'
१४. दर्शनद्वार–सामान्यविशेषात्मक वस्तु के सामान्यधर्म को ग्रहण करने वाला अवबोध दर्शन कहलाता है। यह चार प्रकार का है-१. चक्षुर्दर्शन, २. अचक्षुर्दर्शन, ३. अवधिदर्शन और ४. केवलदर्शन।
चक्षुर्दर्शन-सामान्य-विशेषात्मक वस्तु के रूप सामान्य को चक्षु द्वारा ग्रहण करना चक्षुर्दर्शन है। अचक्षुर्दर्शन-चक्षु को छोड़कर शेष इन्द्रियों और मन द्वारा सामान्यधर्म को जानना अचक्षुर्दर्शन
है
अवधिदर्शन-इन्द्रिय और मन की सहायता के बिना रूपी सामान्य को जानना अवधिदर्शन है। केवलदर्शन-सकल संसार के पदार्थों के सामान्य धर्मों को जानने वाला केवलदर्शन है।
सूक्ष्म पृथ्वीकायिक जीवों के इन चार दर्शनों में से एक अचक्षुर्दर्शन पाया जाता है। स्पर्शनेन्द्रिय की अपेक्षा अचक्षुर्दर्शन है, अन्य कोई दर्शन उनमें नहीं होता।
१५. ज्ञानद्वार-वैसे तो वस्तु-स्वरूप को जानना ही ज्ञान कहलाता है परन्तु शास्त्रकारों ने वही ज्ञान ज्ञान माना है जो सम्यक्त्वपूर्वक हो। सम्यक्त्वरहित ज्ञान को अज्ञान कहा जाता है। मतिज्ञान, श्रुतज्ञान, अवधिज्ञान सम्यग्दृष्टि के तो ज्ञानरूप हैं किन्तु मिथ्यादृष्टि के मति-अज्ञान, श्रुत-अज्ञान और विभंगज्ञान हो जाते है।
सूक्ष्म पृथ्वीकायिक जीव मिथ्यादृष्टि हैं, अतएव उनमें ज्ञान नहीं माना गया है और निश्चित रूप से मति-अज्ञान और श्रुत-अज्ञान माना गया है । यह मति-अज्ञान और श्रुत-अज्ञान भी अन्य बादर आदि
१. न सम्ममिच्छो कुणइ कालं-इति वचनात्।