Book Title: Agam 14 Upang 03 Jivabhigam Sutra Part 01 Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni, Rajendramuni, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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[जीवाजीवाभिगमसूत्र
प्रकार के साधारण वनस्पतिकायिक-अंवक, पलक, सेवाल, आदि जानने चाहिए।
ये संक्षेप मे दो प्रकार के कहे गये हैं, जैसे-पर्याप्त और अपर्याप्त । भगवन् ! इन जीवों के कितने शरीर कहे गये हैं ?
गौतम ! तीन शरीर कहे गये हैं-औदारिक, तैजस और कार्मण। इस प्रकार सब कथन बादर पृथ्वीकायिकों की तरह जानना चाहिए। विशेषता यह है कि इनके शरीर की अवगाहना जघन्य से अंगुल का असंख्यातवाँ भाग और उत्कृष्ट से एक हजार योजन से कुछ अधिक है। इनके शरीर के संस्थान अनियत हैं, स्थिति जघन्य से अन्तर्मुहूर्त और उत्कृष्ट दस हजार वर्ष की जाननी चाहिए। यावत् ये दो गति में जाते हैं और तीन गति से आते हैं। प्रत्येकवनस्पति जीव असंख्यात हैं और साधारणवनस्पति के जीव अनन्त कहे गये हैं। ___ यह बादर वनस्पति का वर्णन हुआ और इसके साथ ही स्थावर का वर्णन पूरा हुआ।
विवेचन-एक ही शरीर में आश्रित अनन्त साधारणवनस्पतिकायिक जीव एक साथ ही उत्पन्न होते हैं, एक साथ ही उनका शरीर बनता है, एक साथ ही वे प्राणापान के पुद्गलों को ग्रहण करते हैं और एक साथ ही श्वासोच्छ्वास लेते हैं। एक शरीर में आश्रित साधारण जीवों का आहार, श्वासोच्छ्वास आदि एक साथ ही होता है। एक जीव द्वारा आहारादि का ग्रहण सब जीवों के द्वारा आहारादि का ग्रहण करना है
और सबके द्वारा आहारादि का ग्रहण किया जाना ही एक जीव के द्वारा आहारादि ग्रहण करना है। यही साधारण जीवों की साधारणता का लक्षण है।
___ जैसे अग्नि में प्रतप्त लोहे का गोला सारा का सारा लाल अग्निमय हो जाता है वैसे ही निगोदरूप एक शरीर में अनन्त जीवों का परिणमन जान लेना चाहिए। एक, दो, तीन, संख्यात, असंख्यात निगोद जीवों का शरीर दृष्टिगोचर नहीं होता। अनन्त निगोदों के शरीर ही दृष्टिगोचर हो सकते हैं। इस विषय में तीर्थकर देव के वचन ही प्रमाणभूत हैं। भगवान् का कथन है कि सुई की नोंक के बराबर निगोदकाय में असंख्यात गोले होते हैं, एक-एक गोले में असंख्यात निगोद होते हैं और एक-एक निगोद में अनन्त-अनन्त जीव होते हैं।
प्रस्तुत सूत्र में साधारण वनस्पतिकाय के अनेक प्रकार बताये गये हैं। कतिपय साधारण वनस्पतियों के नाम बताकर विशेष जानकारी के लिए प्रज्ञापनासूत्र का निर्देश कर दिया है। वहाँ इस सम्बन्ध में विस्तार के साथ निरूपण है।
___ प्रासंगिक और उपयोगी होने से प्रज्ञापनासूत्र में निर्दिष्ट बादर वनस्पति और साधारण वनस्पति के लक्षणों का यहाँ उल्लेख किया जाता है
१. गोला य असंखेज्जा होंति निगोया असंखया गोले।
एकेको य निगोओ अणंतजीवो मुणेयव्यो।