Book Title: Agam 14 Upang 03 Jivabhigam Sutra Part 01 Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni, Rajendramuni, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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[जीवाजीवाभिगमसूत्र
में उत्पन्न नहीं होते। तिर्यंचों और मनुष्यों में भी असंख्यात वर्ष की आयु वाले तिर्यंचों और मनुष्यों में उत्पन्न नहीं होते, इत्यादि।
भगवन् ! वे जीव कितनी गति वाले और कितनी आगति वाले कहे गये हैं ? गौतम ! दो गति वाले और तीन आगति वाले कहे गये हैं। हे आयुष्मन् श्रमण! वे बादर पृथ्वीकाय के जीव प्रत्येकशरीरी हैं और असंख्यात लोकाकाश प्रमाण
इस प्रकार बादर पृथ्वीकाय का वर्णन हुआ। इसके साथ ही पृथ्वीकाय का वर्णन पूरा हुआ।
विवेचन-बादर नामकर्म के उदय से जिन पृथ्वीकायिक जीवों का शरीर बादर हो-समूहरूप में चर्मचक्षुओं से ग्राह्य हो वे बादर पृथ्वीकायिक जीव हैं। बादर पृथ्वीकायिक जीवों के दो भेद हैं-श्लक्षण बादर पृथ्वीकायिक और खर बादर पृथ्वीकायिक। पीसे हुए आटे के समान जो मिट्टी मृदु हो वह श्लक्षण पृथ्वी है और तदात्मक जो जीव हैं वे भी उपचार से श्लक्षण बादर पृथ्वीकायिक कहलाते हैं। कर्कशता वाली पृथ्वी खर बादर पृथ्वी है। तदात्मक जीव उपचार से खर बादर पृथ्वीकायिक कहलाते हैं।
श्लक्षण बादर पृथ्वीकाय-श्लक्षण बादर पृथ्वीकाय के सात प्रकार हैं-काली मिट्टी आदि भेद प्रज्ञापना के अनुसार जानने की सूचना सूत्रकार ने दी है। प्रज्ञापना के उस पाठ का अर्थ इस प्रकार है
१. काली मिट्टी, २. नीली मिट्टी, ३. लाल मिट्टी, ४. पीली मिट्टी, ५. सफेद मिट्टी, ६. पांडु मिट्टी और ७. पणग मिट्टी-ये सात प्रकार की मिट्टियाँ श्लक्ष्ण बादर पृथ्वी हैं। इनमें रहे हुए जीव श्लक्ष्ण बादर पृथ्वीकायिक जीव हैं। वर्ण के भेद से पूर्व के ५ भेद स्पष्ट ही हैं। पांडु मिट्टी वह है जो देशविशेष में मिट्टीरूप होकर पांडु नाम से प्रसिद्ध है। पनकमृत्तिका का अर्थ टीकाकार ने इस प्रकार किया है-नदी आदि में पूर आने और उसके उतरने के बाद भूमि में जो मृदु पंक शेष रह जात है, जिसे 'जलमल' भी कहते है वह पनकमृत्तिका है। उसमें रहे हुए जीव भी उपचार से पनकमृत्तिका श्लक्ष्ण बादर पृथ्वीकायिक कहलाते हैं।
खर बादर पृथ्वीकायिक-खर बादर पृथ्वीकायिक अनेक प्रकार के कहे गये हैं। मुख्यतया चार गाथाओं में चालीस प्रकार बताये गये हैं। वे इस प्रकार-१ शुद्धपृथ्वी-नदीतट भित्ति २ शर्करा-छोटे
१. पुढवी य सकरा बालुया य उवले सिला य लोणूसे ।
तंबा य तउय सीसय रुप्प सुवण्णे य वरे य ॥१॥ हरियाले हिंगुलए मणोसिला सासगंजणपवाले। अब्भपडलब्भवालुय वायरकाये मणिविहाणा॥२॥ गोमेज्जए य रुयए अंके फलिहे य लोहियक्खे य । मरगय मसारगल्ले भुयमोयग इंदनीले य ॥३॥ चंदण गेरुय हंसे पुलए सोगंधिए य बोद्धव्वे। चंदप्पभ वेरुलिए जलकंते सूरकंते य॥४॥
-प्रज्ञापना, सूत्र-१५