Book Title: Agam 14 Upang 03 Jivabhigam Sutra Part 01 Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni, Rajendramuni, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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प्रथम प्रतिपत्ति: पृथ्वीकाय का वर्णन]
[२९
उ.-गौतम! एकगुण काले पुद्गलों का भी आहार करते हैं यावत् अनन्तगुण काले पुद्गलों का भी आहार करते हैं। इस प्रकार यावत् शुक्लवर्ण तक जान लेना चाहिए।
___प्र.-भंते ! भाव से जिन गंध वाले पुद्गलों का आहार करते हैं वे एक गंध वाले या दो गंध वाले पुद्गलों का आहार करते हैं ?
उ.-गौतम! स्थानमार्गणा की अपेक्षा एक गन्ध वाले पुद्गलों का भी आहार करते हैं और दो गन्ध वालों का भी। भेदमार्गणा की अपेक्षा से सुरभिगन्ध वाले और दुरभिगन्ध वाले दोनों का आहार करते हैं।
प्र.- भंते! जिन सुरभिगंध वाले पुद्गलों का आहार करते हैं वे क्या एकगुण सुरभिगन्ध वाले हैं यावत् अनन्तगुण सुरभिगन्ध वाले होते हैं ?
उ.- गौतम! एकगुण सुरभिगन्ध वाले यावत् अनन्तगुण सुरभिगन्ध वाले पुद्गलों का आहार करते
हैं।
___ इसी प्रकार दुरभिगन्ध के विषय में भी कहना चाहिए। रसों का वर्णन भी वर्ण की तरह जान लेना चाहिए।
प्र.-भंते ! भाव की अपेक्षा से वे जीव जिन स्पर्श वाले पुद्गलों का आहार करते हैं वे एक स्पर्श वालों का आहार करते हैं यावत् आठ स्पर्श वाले पुद्गलों का आहार करते हैं ?
उ.-गौतम! स्थानमार्गणा की अपेक्षा एक स्पर्श वालों का आहार नहीं करते, दो स्पर्श वालों का आहार नहीं करते हैं, तीन स्पर्श वालों का आहार नहीं करते, चार स्पर्श वाले, पाँच स्पर्श वाले यावत् आठ स्पर्श वाले पुद्गलों का आहार करते हैं। भेदमार्गणा की अपेक्षा कर्कश स्पर्श वाले पुद्गलों का भी यावत् रूक्ष स्पर्श वाले पुद्गलों का भी आहार करते हैं।
प्र.-भंते! स्पर्श की अपेक्षा जिन कर्कश पुद्गलों का आहार करते हैं वे क्या एक गुण कर्कश हैं या अनन्तगुण कर्कश हैं ?
उ.-गौतम! एकगुण कर्कश का भी आहार करते हैं और अनन्तगुण कर्कश का भी आहार करते हैं। इस प्रकार यावत् रूक्षस्पर्श तक जान लेना चाहिए।
प्र.-भंते ! वे आत्म-प्रदेशों से स्पृष्ट का आहार करते हैं या अस्पृष्ट का आहार करते हैं ? उ.-गौतम! स्पृष्ट का आहार करते हैं, अस्पृष्ट का नहीं। प्र.-भंते ! वे आत्म-प्रदेशों में अवगाढ पुद्गलों का आहार करते हैं या अनवगाढ का ? उ.-गौतम! आत्म-प्रदेशों में अवगाढ पुद्गलों का आहार करते हैं, अनवगाढ का नहीं।
प्र.-भंते! वे अनन्तर-अवगाढ पुद्गलों का आहार करते हैं या परम्परा से अवगाढ पुद्गलों का आहार करते हैं ?