Book Title: Agam 14 Upang 03 Jivabhigam Sutra Part 01 Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni, Rajendramuni, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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प्रथम प्रतिपत्ति :स्वरूप और प्रकार ]
[११
आशय यह कि स्कन्ध या देश से जुड़े हुए परमाणु प्रदेश हैं और स्कन्ध या देश से अलग स्वतन्त्र परमाणु, परमाणु पुद्गल हैं।
एकमात्र पुद्गल द्रव्य ही रूपी अजीव है। ये पुद्गल पांच वर्ण, दो गंध, पांच रस, आठ स्पर्श और पांच संस्थान के रूप में परिणत होते हैं। प्रज्ञापनासूत्र में इन वर्ण, गन्ध, रस, स्पर्श और संस्थानों के पारस्परिक सम्बन्ध की अपेक्षा बनने वाले विकल्पों का कथन किया गया है। संक्षेप से उनका यहाँ उल्लेख करना प्रासंगिक है। वह इस प्रकार है
___ काला, हरा, लाल, पीला और सफेद-इन पांच वर्ण वाले पदार्थों में २ गन्ध, ५ रस, ८ स्पर्श और ५ संस्थान, ये बीस बोल पाये जाते हैं अतः २० x ५ = १०० भेद वर्णाश्रित हुए।
सुरभिगन्ध दुरभिगन्ध में ५ वर्ण, ५ रस, ८ स्पर्श और ५ संस्थान, ये २३ बोल पाये जाते हैं अतः २३ ४ २ = ४६ भेद गन्धाश्रित हुए।
मधुर, कटु, तिक्त, आम्ल और कसैला-इन पांच रसों में ५ वर्ण, २ गन्ध, ८ स्पर्श और ५ संस्थान ये २० बोल पाये जाते हैं अतः २० x ५ = १०० भेद रसाश्रित हुए।
गुरु और लघु स्पर्श में ५ वर्ण, २ गन्ध, ५ रस और ६ स्पर्श (गुरु और लघु छोड़कर) और पांच संस्थान, ये २३ बोल पाये जाते हैं अत: 23 x २ = ४६ भेद गुरु-लघुस्पर्शाश्रित हुए।
शीत और उष्ण स्पर्श में भी इसी प्रकार ४६ भेद पाये जाते हैं। अन्तर यह है कि आठ स्पर्शों में से शीत, उष्ण को छोड़कर छह स्पर्श लेने चाहिए।
स्निग्ध, रूक्ष, कोमल तथा कठोर इन में भी पूर्वोक्त छह-छह स्पर्श लेकर २३-२३ बोल पाये जाते हैं, अतः २३ x ४ = ९२ भेद हुए। ४६+४६+९२-१८४ भेद स्पर्शाश्रित हुए।
वृत्त, त्र्यस्त्र, चतुरस्र, परिमंडल और आयत इन पांच संस्थानों में ५ वर्ण, २ गन्ध, ५ रस और ८ स्पर्श ये बीस-बीस बोल पाये जाते हैं अतः २० x ५ = १०० भेद संस्थान–आश्रित हुए।
इस तरह वर्णाश्रित १००, गन्धाश्रित ४६, रसाश्रित १००, स्पर्शाश्रित १८४ और संस्थान आश्रित १००, ये सब मिलकर ५३० विकल्प रूपी अजीव के होते हैं।
अरूपी अजीव के धर्मास्तिकाय आदि के स्कंध, देश, प्रदेश आदि १० भेद पूर्व में बताये गये हैं। धर्मास्तिकाय, अधर्मास्तिकाय, आकाशस्तिकाय और काल-इन चार के द्रव्य, क्षेत्र, काल, भाव और गुण की अपेक्षा से २० भेद भी होते हैं। अतः १०+२० मिलाकर ३० अरूपी अजीव के भेद बन जाते हैं।
इस प्रकार रूपी अजीव के ५३० तथा अरूपी अजीव के ३० भेद मिलाकर ५६० भेद अजीवाभिगम के हो जाते हैं।
वर्णादि के परिणाम का अवस्थान-काल जघन्य एक समय और उत्कृष्ट असंख्यात काल है।