Book Title: Agam 14 Upang 03 Jivabhigam Sutra Part 01 Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni, Rajendramuni, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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प्रथम प्रतिपत्ति : पृथ्वीकाय का वर्णन ]
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होता है, उपपातक्षेत्र में आया हुआ नहीं। उपपातक्षेत्र समागत जीव प्रथम समय में ही आहारक होता है। इससे आहारपर्याप्ति की समाप्ति का काल एक समय का सिद्ध होता है। यदि उपपातक्षेत्र में आने के बाद भी आहारपर्याप्ति से अपर्याप्त होता तो प्रज्ञापना में कदाचित् आहारक और कादाचित् अनाहारक' ऐसा उत्तर दिया गया होता। जैसा कि शरीरादि पर्याप्तियों में दिया गया है। इसके बाद शरीर आदि पर्याप्तियाँ अलगअलग एक-एक अन्तर्मुहूर्त में पूरी होती हैं। सब पर्याप्तियों का समाप्तिकाल भी अन्तर्मुहूर्त प्रमाण है क्योंकि अन्तर्मुहूर्त भी अनेक प्रकार का है। किसके कितनी पर्याप्तियाँ
एकेन्द्रिय जीवों के चार पर्याप्तियाँ होती हैं-१. आहार, २. शरीर, ३. इन्द्रिय और ४. श्वासोच्छ्वास।
द्वीन्द्रिय, त्रीन्द्रिय, चतुरिन्द्रिय और असंज्ञी पंचेन्द्रिय के पांच पर्याप्तियाँ होती हैं-पूर्वोक्त चार और भाषापर्याप्ति।
संज्ञी पंचेन्द्रिय जीवों के छहों पर्याप्तियाँ होती हैं।
आहार, शरीर और इन्द्रिय-ये तीन पर्याप्तियाँ प्रत्येक जीव पूर्ण करता है। इनको पूर्ण करके ही जीव अगले भव की आयु का बंध कर सकता है। अगले भव की आयु का बंध किये बिना कोई जीव नहीं मर सकता। इन तीन पर्याप्तियों की अपेक्षा से तो प्रत्येक जीव पर्याप्त ही होता है परन्तु पर्याप्त-अपर्याप्त का विभाग इन तीन पर्याप्तियों की अपेक्षा से नहीं है, अपितु जिन जीवों के जितनी पर्याप्तियाँ कही गई हैं, उनकी पूर्णताअपूर्णता को लेकर है।
स्वयोग्य पर्याप्तियों को जो पूर्ण करे वह पर्याप्त जीव है और स्वयोग्य पर्याप्तियों को पूर्ण न करे वह अपर्याप्त जीव है। जैसे एकेन्द्रिय जीव के स्वयोग्य पर्याप्तियाँ ४ कही गई हैं। इन चार पर्याप्तियों को पूर्ण करने वाला एकेन्द्रिय जीव पर्याप्त है और इन चार को पूर्ण न करने वाला अपर्याप्त है। पर्याप्त-अपर्याप्त के भेद
पर्याप्त जीव दो प्रकार के हैं-१. लब्धिपर्याप्त और २. करणपर्याप्त । जिस जीव ने स्वयोग्य पर्याप्तियों को अभी पूर्ण नहीं किया किन्तु आगे अवश्य पूरी करेगा, वह लब्धि की अपेक्षा से लब्धि-पर्याप्तक कहा जाता है। जिस जीव ने स्वयोग्य पर्याप्तियाँ पूरी कर ली हैं वह करणपर्याप्त है।
अपर्याप्त जीव भी दो प्रकार के हैं-१. लब्धि-अपर्याप्त और २. करण-अपर्याप्त। जिस जीव ने स्वयोग्य पर्याप्तियां पूरी नहीं की और आगे करेगा भी नहीं अर्थात् अपर्याप्त ही मरेगा वह लब्धि-अपर्याप्त है। जिसने स्वयोग्य पर्याप्तियों को पूरा नहीं किया किन्तु आगे पूरा करेगा वह करण से अपर्याप्त है।
इस प्रकार सूक्ष्म पृथ्वीकायिक जीवों के पर्याप्तक और अपर्याप्तक के भेद से दो प्रकार हुए।
सूक्ष्म पृथ्वीकायिक जीवों के सम्बन्ध में शेष वक्तव्यता कहने के लिए दो संग्रहणी गाथाएँ यहाँ दी गई हैं, वे इस प्रकार हैं