Book Title: Agam 08 Ang 08 Anantkrut Dashang Sutra Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni, Divyaprabhashreeji, Devendramuni, Ratanmuni, Kanhaiyalal Maharaj
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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प्रथम वर्ग]
विवेचन-प्रस्तुत सूत्र में द्वारकाधीश कृष्ण महाराज के राज्य-वैभव का वर्णन किया गया है। इस वर्णन से स्पष्ट हो जाता है कि महाराज कृष्ण की राजधानी में राजयोग्य सभी वस्तुएं उपलब्ध थीं और इनका राज्य आर्थिक, सामाजिक, सैनिक सभी दृष्टियों से सम्पन्न था।
'दसण्हं दसाराणं' इन पदों की व्याख्या करते हुए वृत्तिकार अभयदेवसूरि कहते हैं - 'समुद्रविजयोऽक्षोभ्यस्तिमितः सागरस्तथा। हिमवानचलश्चैव, धरणः पूरणस्तथा ॥१॥ अभिचन्द्रश्च नवमो, वसुदेवश्च वीर्यवान् । वसुदेवानुजे कन्ये, कुन्ती मद्री च विश्रुते ॥ २ ॥ दश च तेऽश्चि -पूज्याः इति दशार्हाः।'
अर्थात् - कृष्ण महाराज के पिता वसुदेव दस भाई थे। (१) समुद्रविजय, (२) अक्षोभ्य, (३) स्तिमित, (४) सागर, (५) हिमवान्, (६) अचल, (७) धरण, (८) पूरण, (९) अभिचन्द्र, (१०) वसुदेव। ये दसों बड़े बली थे। समुद्रविजय इनमें सबसे बड़े थे और वसुदेव सबसे छोटे । इन के कुन्ती और माद्री ये दोनों बहिनें थीं।
'पजुण्णपामोक्खाणं अधुट्ठाणं कुमारकोडीणं'- अर्थात् साढे तीन करोड़ कुमार थे और इन में प्रद्युम्न प्रमुख थे।
यहाँ एक प्रश्न हो सकता है कि कुमारों की इतनी बड़ी संख्या क्या द्वारका नगरी में ही विद्यमान थी? या कुछ राजकुमार द्वारका में और कुछ द्वारका से बाहर रहते थे? इसका समाधान यह है कि सूत्रकार ने कमारों की जो संख्या बतलाई है, वह केवल द्वारकानिवासी राजकमारों की नहीं. प्रत्यत यह सभी राजकुमारों की है। महाराज कृष्ण के समस्त राज्य में इनका निवास था। उस समय कृष्ण महाराज का राज्य वैताढ्य पर्वत तक फैला हुआ था, अत: कुमारों की उक्त संख्या भारतवर्ष के तीनों खंडों में निवास करती थी।
सूत्रकार ने आगे चलकर 'उग्गसेणपामोक्खाणं सोलसण्हं रायसाहस्सीणं' ये पद दिये हैं। इनका अर्थ है-सोलह हजार राजा थे, इनके प्रमुख महाराज उग्रसेन थे। इनके राज्य भी तीनों खंडों में थे और तीनों खंडों में इनका निवास था।
सूत्रकार ने कुमारों की, राजाओं की तथा अन्य लोगों की संख्या का जो निर्देश किया है इसके पीछे यही भावना है कि कृष्ण महाराज के राज्य में ये सब लोग रहते थे और इन सब पर कृष्ण महाराज राज्य करते थे। जिस प्रकार आजकल जनगणना द्वारा जनता की संख्या का पता लगाया जाता है और देश के निवासियों की जाति, धर्म और भाषा आदि का बोध प्राप्त किया जाता है, ठीक इसी प्रकार उस समय वासुदेव कृष्ण के राज्य में कितने कुमार थे? कितने राजा थे? कितना सैनिक दल था? कितनी रानियाँ थीं? कितनी गणिकाएं थीं? आदि सभी बातों का सूत्रकार ने स्पष्ट उल्लेख किया है। इसका यह अर्थ नहीं समझना चाहिए कि सूत्रकार ने जिन लोगों का परिचय कराया है, वे सब द्वारका में ही रहा करते थे। 'दुद्दन्तसाहस्सीणं'- अर्थात् शत्रुओं द्वारा जिनका दमन न किया जा सके, जिन्हें पराजित न किया जा सके। महाराज कृष्ण के राज्य में ऐसे ६० हजार दुर्दान्त थे।