Book Title: Agam 08 Ang 08 Anantkrut Dashang Sutra Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni, Divyaprabhashreeji, Devendramuni, Ratanmuni, Kanhaiyalal Maharaj
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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[अन्तकृद्दशा रत्तबंधुजीवग-रक्तबंधुजीवक यह शब्द रक्त और बन्धुजीवक इन दो पदों से बना है। रक्त लाल वर्ण को कहते हैं, बंधुजीवक शब्द का अर्थ होता है -गुल्म-विशेष-दुपहरिया का पौधा, जिसमें लाल रंग के फूल लगते हैं और जो बरसात में फूलता है। दोनों का सम्मिलित अर्थ है-लाल रंग का दुपहरिया नामक एक गुल्म विशेष। आचार्य अभयदेव सूरि के अनुसार बन्धुजीवक पांच वर्णवाले पुष्प विशेष होते हैं। प्रस्तुत में रक्तवर्ण अभीष्ट है, अतः सूत्रकार ने बन्धुजीवक शब्द के साथ रक्त शब्द का प्रयोग किया है। सचित्र अर्धमागधी कोष में रक्त बंधुजीवक का अर्थ-वर्षा ऋतु में उत्पन्न होने वाला, गोगलगाय, देवगाय, इन्द्रगोप, नामक लाल रंग का जीव।अर्धमागधी कोषकार ने रक्तबन्धुजीवक शब्द का जो अर्थ लिखा है, उसे लोकभाषा में इन्द्रगोप या (वीर बहूटी) कहते हैं। यह जीव रक्तवर्ण का तथा मखमल जैसा नरम होता है।
लक्खारस-लाक्षारस-महावर, लाख के रंग का नाम है। यह रक्त होता है, इसे स्त्रियां अपने पांवों में लगाती हैं।
सरस-पारिजातक-में सरस शब्द विकसित-खिला हुआ, इस अर्थ का बोधक है। पारिजातक शब्द के अनेकों अर्थ उपलब्ध होते हैं, १-पुष्प-विशेष, २-फरहद का फूल जो रक्त वर्ण का और अत्यन्त शोभायमान होता है, ३-देववृक्ष-विशेष, ४-कल्पतरु-विशेष। प्रस्तुत में पारिजातक का अर्थ रक्तवर्णीय पुष्प ही अधिक उपयुक्त प्रतीत होता है।
तरुण दिवायर– इस पद में प्रयुक्त 'तरुण' शब्द युवा अर्थ का बोधक है और मध्याह्नकाल में ही सूर्य तरुण-युवा अवस्था को प्राप्त हुआ माना जाता है, अतः मध्याह्न के सूर्य को ही 'तरुण दिवाकर' कह सकते हैं, परन्तु प्रस्तुत में यह अर्थ इष्ट नहीं है। राजकुमार गजसुकुमार का वर्ण रक्त होने से दोपहर के सूर्य के साथ उसका सादृश्य नहीं हो सकता। यही कारण है कि आचार्य अभयदेव सूरि ने तरुणदिवाकर का अर्थ उदीयमान-उदय होता हुआ सूर्य किया है। यह अर्थ उचित भी है, क्योंकि उदीयमान सूर्य का वर्ण लाल होता है, अत: राजकुमार गजसुकुमार के रक्त वर्ण के साथ इसका सम्बन्ध ठीक बैठ जाता है। इसके अतिरिक्त तरुण शब्द रक्त अर्थ में भी प्रयुक्त होता है। उत्तराध्ययन सूत्र के ३४वें अध्ययन के तेजोलेश्या-प्रकरण में लिखा है
"हिंगुल धाउ संकासा, तरुणाइच्चसंनिभा।
सुयतुंडपईवनिभा, तेउलेसा उ वण्णओ"॥ अर्थात् हिंगुल धातु, तरुण सूर्य, तोते की चोंच और दीपशिखा के समान तेजोलेश्या का वर्ण होता है। प्रस्तुत सूत्र में तरुण शब्द रक्त अर्थ में प्रयुक्त हुआ है, अन्यथा तेजोलेश्या के वर्ण सम्बन्धी अर्थ की संगति नहीं हो सकती।
जपासुमन, रक्तबन्धु-जीवक, लाक्षारस, सरस परिजातक और तरुण दिवाकर समान जिसकी प्रभा हो, कान्ति हो, चमक हो, वर्ण हो, उसको 'जपासुमन- रक्तबन्धुजीवक-लाक्षारस-सरस पारिजातकतरुण दिवाकर-समप्रभ' कहते हैं।
___ गय-तालुय-समाणं-अर्थात्-गज हाथी को कहते हैं। तालु अर्थात् ऊपर के दांतों और कौवे के बीच का गड्ढा । गज के तालु को गजतालु कहते हैं । गज के तालु के समान जिसका तालु हो वह 'गज
१. वृत्ति-पत्र-९