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[अन्तकृद्दशा ..महाभारत में श्रीकृष्ण ने द्वारकागमन के बारे में युधिष्ठिर से कहा-मथुरा को छोड़कर हम कुशलस्थली नामक नगरी में आये जो रैवतक पर्वत से उपशोभित थी। वहां दुर्गम दुर्ग का निर्माण किया,
अधिक द्वारों वाली होने के कारण द्वारवती अथवा द्वारका कहलाई।१ .... महाभारत जन-पर्व में नीलकंठ ने कुशावर्त का अर्थ द्वारका किया है।
_ 'ब्रज का सांस्कृतिक इतिहास' में प्रभुदयाल मित्तल ने लिखा है शूरसेन जनपद से यादवों के आ जाने के कारण द्वारका के उस छोटे से राज्य की बड़ी उन्नति हुई थी। वहां पर दुर्भेद्य दुर्ग और विशाल नगर का निर्माण कराया गया और उसे अंधक-वृष्णि संघ के एक शक्तिशाली यादव राज्य के रूप में संगठित किया गया। भारत के समुद्र-तट का वह सुदृढ़ राज्य विदेशी अनार्यों के आक्रमण के लिए देश का एक सजग प्रहरी भी बन गया था। गुजराती भाषा में 'द्वार' का अर्थ बंदरगाह है। इस प्रकार द्वारका या द्वारवती का अर्थ हुआ बंदरगाहों की नगरी।' उन बंदरगाहों से यादवों ने सुदूर-समुद्र की यात्रा कर विपुल सम्पत्ति अर्जित की थी। द्वारका में निर्धन, भाग्यहीन, निर्बल तन और मलिन मन का कोई भी व्यक्ति नहीं था।
(१) रायस डेविड्स ने कम्बोज को द्वारका की राजधानी लिखा है।
(२) पेतवत्थु में द्वारका को कम्बोज का एक नगर माना है। डॉक्टर मलशेखर ने प्रस्तुत कथन का स्पष्टीकरण करते हुए लिखा है संभव है-यह कम्बोज ही 'कंसभोज' हो, जो कि अंधकवृष्णि के दस पुत्रों का देश था।
__ (२) डॉ. मोतीचन्द्र कम्बोज को पामीर प्रदेश मानते हैं और द्वारका को वदरवंशा से उत्तर में अवस्थित 'दरवाज' नामक नगर कहते हैं।
कुशलस्थली पुरीं रम्यां रैवतेनोपशोभिताम्। ततो निवेशं तस्यां च कृतवन्तो वयं नृप! ॥ ५० ॥ . तथैव दुर्ग-संस्कारं देवैरपि दुरासदम्। स्त्रियोऽपि यस्यां युध्येयुः किमु वृष्णि महारथाः ॥५१॥ ... मथुरां संपरित्यज्य गता द्वारवतीपुरीम्॥६७॥
-महाभारतसभापर्व, अ. १४ (क) महाभारत जनपर्व, अ. १६० श्लोक ५०
(ख) अतीत का अनावरण, पृ. १६३. ३. द्वितीय खण्ड ब्रज का इतिहास, पृ. ४७ ४. हरिवंशपुराण २।५ । ६५.
Buddhist India, P. 28
Kamboja was the adjoining country in the extreme North-West, with Dvaraka as its Capital. ६. पेतवत्थु भाग २, पृ. ९ ७. दि डिक्शनरी ऑफ पाली प्रॉमर नेम्स, भाग १, पृ. ११२६ ८. ज्योग्राफिकल एण्ड इकोनॉमिक स्टडीज इन दी महाभारत, पृष्ठ ३२-४०