Book Title: Agam 08 Ang 08 Anantkrut Dashang Sutra Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni, Divyaprabhashreeji, Devendramuni, Ratanmuni, Kanhaiyalal Maharaj
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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परिशिष्ट २]
[१८९ (४) घट जातक का अभिमत है कि द्वारका के एक ओर विराट् समुद्र अठखेलियां कर रहा था तो दूसरी ओर गगनचुम्बी पर्वत था। डॉ. मलशेखर का भी यही अभिमत रहा है।
(५) उपाध्याय भरतसिंह के मन्तव्यानुसार द्वारका सौराष्ट्र का एक नगर था। सम्प्रति द्वारका कस्बे से आगे बीस मील की दूरी पर कच्छ की खाड़ी में एक छोटा-सा टापू है। वहां एक दूसरी द्वारका है जो 'बेट द्वारका' कही जाती है। माना जाता है कि यहां पर श्रीकृष्ण परिभ्रमणार्थ आते थे। द्वारका और बेट द्वारका दोनों ही स्थलों में राधा, रुक्मिणी, सत्यभामा आदि के मन्दिर हैं।
(६) बॉम्बे गेजेटीअर में कितने ही विद्वानों ने द्वारका की अवस्थिति पंजाब में मानने की संभावना की है।
(७) डॉ. अनन्तसदाशिव अल्तेकर ने लिखा है- प्राचीन द्वारका समुद्र में डूब गई, अतः द्वारका की अवस्थिति का निर्णय करना संशयास्पद है।५ (६) दूतिपलाश चैत्य
दूतिपलाश नामक उद्यान वाणिज्यग्राम के बाहर था। जहाँ पर भगवान् महावीर ने आनन्द गाथापति, सुदर्शन श्रेष्ठी आदि को श्रावक धर्म में दीक्षित किया था। (७) पूर्णभद्र चैत्य
चम्पा का यह प्रसिद्ध उद्यान था। जहां पर भगवान् महावीर ने शताधिक व्यक्तियों को श्रमण व श्रावक धर्म में दीक्षित किया था। राजा कूणिक भगवान् को बड़े ठाठ-बाठ से वन्दन के लिये गया था। (८) भद्दिलपुर
भद्दिलपुर मलयदेश की राजधानी था। इसकी परिगणना अतिशय क्षेत्रों में की गई है। मुनि कल्याणविजय जी के अभिमतानुसार पटना से दक्षिण में लगभग एक सौ मील और गया से नैऋत्य दक्षिण में अट्ठाईस मील की दूरी पर गया जिले में अवस्थित हररिया और दन्तारा गांवों के पास प्राचीन भद्दिलनगरी थी, जो पिछले समय में भद्दिलपुर नाम से जैनों का एक पवित्र तीर्थ रहा है।६
आवश्यक सूत्र के निर्देशानुसार श्रमण भगवान् महावीर ने एक चातुर्मास भद्दिलपुर में किया था।
डॉ. जगदीशचन्द्र जैन का मन्तव्य है कि हजारीबाग जिले में भदिया नामक जो गाँव है, वही . भद्दिलपुर था। यह स्थान हंटरगंज से छह मील के फासले पर कुलुहा पहाड़ी के पास है। १. जातक (चतुर्थ खण्ड) पृ. २८४
दि डिक्शनरी ऑफ पाली प्रॉमर नेम्स, भाग १, पृ.११२५. ३. बौद्धकालीन भारतीय भूगोल, पृ. ४८७ ४. बॉम्बे गेजेटीअर भाग १ पार्ट १, पृ.११ का टिप्पण १ ५. इण्डियन एन्टिक्वेरी, सन् १९२५, सप्लिमेण्ट पृ. २५.
श्रमण भगवान् महावीर, पृ. ३८० ७. जैन आगम साहित्य में भारतीय समाज, पृ. ४७७