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परिशिष्ट २]
[१९१ (१०) राजगृह
मगध की राजधानी राजगृह थी, जिसे मगधपुर, क्षितिप्रतिष्ठत, चणकपुर, ऋषभपुर और कुशाग्रपुर आदि अनेक नामों से पुकारा जाता रहा है।
__ आवश्यक चूर्णि के अनुसार कुशाग्रपुर में प्रायः आग लग जाती थी। अतः राजा श्रेणिक ने राजगृह बसाया। महाभारत युग में राजगृह में जरासंध राज्य करता था। रामायण काल में बीसवें तीर्थंकर मुनिसुव्रत का जन्म राजगृह में हुआ था।
दिगम्बर जैन ग्रन्थों के अनुसार भगवान् महावीर का प्रथम उपदेश और संघ की संस्थापना राजगृह में हुई थी। अन्तिम केवली जम्बू की जन्मस्थली निर्वाणस्थली भी राजगृह रही है। धन्ना और शालिभद्र जैसे धन कुबेर राजगृह के निवासी थे।६ परम साहसी महान् भक्त सेठ सुदर्शन भी राजगृह का रहने वाला था। प्रतिभामूर्ति अभयकुमार आदि अनेक महान् आत्माओं को जन्म देने का श्रेय राजगृह को था।
पांच पहाड़ियों से घिरे होने के कारण उसे गिरिब्रज भी कहते थे। उन पहाड़ियों के नाम जैन, बौद्ध, और वैदिक इन तीनों ही परम्पराओं में पृथक्-पृथक् रहे हैं। ये पहाड़ियां आज भी राजगृह में हैं। वैभार और विपुल पहाड़ियों का वर्णन जैन ग्रन्थों में विशेष रूप से आया है। वृक्षादि से वे खूब हरी-भरी थीं। वहां अनेक जैन-श्रमणों ने निर्वाण प्राप्त किया था। वैभार पहाड़ी के नीचे ही तपोदा और महातपोपनीरप्रभ १. आवश्यक चूर्णि २, पृ. १५८ २. भगवान अरिष्टनेमि और कर्मयोगी श्रीकृष्ण : एक अनुशीलन्, ३. (क) राजगिहे मुणिसुव्वयदेवा पउमा सुमित्त राएहिं ।
-तिलोयपण्णत्ति (ख) हरिवंशपुराण, सर्ग ६०
(ग). उत्तरपुराण, पर्व ६७ ४. (क) हरिवंशपुराण, सर्ग २, श्लोक ६१-६२
(ख) पद्मपुराण, पर्व २, श्लोक ११३
(ग) महापुराण, पर्व १, श्लोक १९६ ५. उत्तरपुराण, पर्व ७६
जम्बूसामी चरियं, पर्व ५-१३ ६. त्रिषष्टि. १०।१।९० । १३६-१४८ ७. अन्तकृत्दशांग
त्रिषष्टि ९. जैन-विपुल, रत्न, उदय, स्वर्ग और वैभार
वैदिक-वैहार, बाराह, वृषभ, ऋषिगिरि और चैत्यक बौद्ध-चन्दन, मिज्झकूट, वेभार, इसगिति और वेपुन्न ।
-सुत्तनिपात की अट्टकथा २, पृ. ३८२