Book Title: Agam 08 Ang 08 Anantkrut Dashang Sutra Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni, Divyaprabhashreeji, Devendramuni, Ratanmuni, Kanhaiyalal Maharaj
Publisher: Agam Prakashan Samiti

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Page 235
________________ १९४] [ अन्तकृद्दशा जा रही थी। बीच में वह वर्षा से भीग गई और कपड़े सुखाने के लिए वहीं एक गुफा में ठहरी', जिसकी पहचान आज भी राजीमती गुफा से की जाती है । २ रैवतक पर्वत सौराष्ट्र में आज भी विद्यमान है। संभव है प्राचीन द्वारका इसी की तलहटी में बसी हो । रैवतक पर्वत का नाम ऊर्जयन्त भी है। रुद्रदाम और स्कंधगुप्त के गिरनार शिला-लेखों में इसका उल्लेख है। वहां पर एक नन्दनवन था, जिसमें सुरप्रिय यक्ष का यक्षायतन था । यह पर्वत अनेक पक्षियों एवं लताओं से सुशोभित था। यहां पर पानी के झरने भी बहा करते थे और प्रतिवर्ष हजारों लोग संखडि (भोज, जीमनवार) करने के लिए एकत्रित होते थे। यहां भगवान् अरिष्टनेमि ने निर्वाण प्राप्त किया था। दिगम्बर परम्परा के अनुसार रैवतकं पर्वत की चन्द्रगुफा में आचार्य धरसेन ने तप किया था और यहीं पर भूतबलि और पुष्पदन्त आचार्यों ने अवशिष्ट श्रुतज्ञान को लिपिबद्ध करने का आदेश दिया था। ६ महाभारत में पाण्डवों और यादवों का रैवतक पर युद्ध होने का वर्णन आया है। जैन ग्रन्थों में रैवतक, उज्जयंत, उज्ज्वल, गिरिणाल और गिरनार आदि नाम इस पर्वत के आये हैं। महाभारत में भी इस पर्वत का दूसरा नाम उज्जयंत आया है ।" (१२) विपुलगिरि पर्वत राजगृह नगर के समीप का एक पर्वत । आगमों में अनेक स्थलों पर इसका उल्लेख मिलता है। स्थविरों की देख-रेख में घोर तपस्वी यहां आकर संलेखना करते थे । १. २. ३. ४. ५. ६. ७. ८. जैन ग्रन्थों में इन पांच पर्वतों का उल्लेख मिलता है - . वैभारगिरि १. २. विपुलगिर गिरिं रेवययं जन्ती, वासेणुल्ला उ अन्तरा । वासन्ते अन्धयारंमि अन्तो लयणस्स सा ठिया ॥ विविध तीर्थकल्प, ३ । १९ जैन आगम साहित्य में भारतीय समज, पृ. ४७२ बृहत्कल्पभाष्यवृत्ति, १ । २९२२ (क) आवश्यकनिर्युक्ति, ३०७ (ख) कल्पसूत्र, ६ । १७४, पृ. १८२ (ग) ज्ञाताधर्मकथा, ५, पृ. ६८ (घ) अन्तकृत्दशा ५, पृ. २८ (ङ) उत्तराध्ययन टीका, २२, पृ. २८० जैन आगम साहित्य में भारतीय समाज पृ. ४७३ आदिपुराण में भारत, पृ. १०९. भ. महावीर नी धर्मकथाओ, पृ. २१६, पं. बेचरदासजी

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