Book Title: Agam 08 Ang 08 Anantkrut Dashang Sutra Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni, Divyaprabhashreeji, Devendramuni, Ratanmuni, Kanhaiyalal Maharaj
Publisher: Agam Prakashan Samiti

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Page 233
________________ १९२] [अन्तकृद्दशा नामक उष्ण पानी का एक विशाल कुण्ड था। वर्तमान में भी वह राजगिर में तपोवन नाम से प्रसिद्ध है। - भगवान् महावीर ने अनेक चातुर्मास वहां व्यतीत किये। दो सौ से अधिक बार उनके समवसरण होने के उल्लेख आगम साहित्य में मिलते हैं। वहाँ पर गुणशील३ मंडिकुच्छ और मोग्गरिपाणि आदि उद्यान थे। भगवान् महावीर प्रायः गुणशील (वर्तमान में जिसे गुणावा कहते हैं) उद्यान में ठहरा करते थे। राजगृह व्यापार का प्रमुख केन्द्र था। वहां पर दूर-दूर से व्यापारी आया करते थे। वहां से तक्षशिला, प्रतिष्ठान, कपिलवस्तु, कुशीनाला, प्रभृति भारत के प्रसिद्ध नगरों में जाने के मार्ग थे।६ बौद्ध ग्रन्थों में वहां के सुन्दर धान के खेतों का वर्णन है। आगम साहित्य में राजगृह को प्रत्यक्ष देवलोकभूत एवं अलकापुरी सदृश कहा है। महाकवि पुष्पदन्त ने लिखा है-सोने, चांदी से निर्मित राजगृही ऐसी प्रतिभासित होती थी कि स्वर्ग से अलकापुरी ही पृथ्वी पर आ गई है। रविषेणाचार्य ने राजगृह को धरती का यौवन कहा है। अन्य अनेक कवियों ने राजगृह के महत्त्व पर विस्तार से प्रकाश डाला है। जैनियों का ही नहीं अपितु बौद्धों का भी राजगृह के साथ मधुर संबंध रहा है। विनयपिटक से स्पष्ट है कि बुद्ध गृहत्याग कर राजगृह आए। तब राजा श्रेणिक ने उनको अपने साथ राजगृह में रहने की प्रेरणा दी थी। पर बुद्ध ने वह बात नहीं मानी। बुद्ध अपने मत का प्रचार करने के लिए कई बार राजगृह आये थे। १. (क) व्याख्याप्रज्ञप्ति, २।५, पृ. १४१ (ख) बृहत्कल्पभाष्य, वृत्ति २ । ३४२९ (ग) वायुपुराण, १।४।५ (क) कल्पसूत्र, ४ । १२३ (ख) व्याख्याप्रज्ञप्ति,७।४,५।९, २।५ (ग) आवश्यकनियुक्ति, ४७३। ४९२ । ५१८ ३. (क) ज्ञाताधर्मकथा, पृ. ४७ (ख) दशाश्रुतस्कंध, १०९ । पृ. ३६४ (ग) उपासकदशा, ८. पृ.५१ ४. व्याख्याप्रज्ञप्ति, १५. ५. अन्तकृद्दशांग ६, पृ. ३१ जैन आगम साहित्य में भारतीय समाज, पृ. ४६२ ७. पच्चक्खं देवलोगभूया एवं अलकापुरीसंकासा। तहिं परुवरु णामे रायगिहु कणयरयण कोडिहिं घडिउ। बलिबंड घरं तहो सुखइहिं सुरणयरु गयणपडिउ ॥ -णायकुमार चरिउ, ६ तत्रास्ति सर्वतः कांतं नाम्ना राजगृहं पुरम्। कुसुमामोदसुभगं भुवनस्येव यौवनम्। पद्मपुराण ३३।२

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