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परिशिष्ट २]
[१९३ वे प्रायः गृद्धकूट पर्वत, कलन्दकनिवाय और वेणुवन में ठहरते थे। एक बार बुद्ध जीवक कौमारभृत्य के आम्रवन में थे तब अभयकुमार ने उनसे हिंसा-अहिंसा के सम्बन्ध में चर्चा की थी।
जब वे वेणुवन में थे तब अभयकुमार ने उनसे विचार-चर्चा की थी। साधु सकलोदायि ने भी बुद्ध से यहां पर वार्तालाप किया। एक बार बुद्ध ने तपोदाराम जहां गर्म पानी के कुंड थे वहाँ पर विहार किया था। बुद्ध के निर्वाण के पश्चात् राजगृह की अवनति होने लगी। जब चीनी यात्री ह्वेनसांग यहाँ पर आया था तब राजगृह पूर्व जैसा नहीं था। आज वहाँ के निवासी दरिद्रं और अभावग्रस्त हैं। आजकल राजगृह 'राजगिर' के नाम से विश्रुत है । राजगिर बिहार प्रान्त में पटना से पूर्व और गया से पूर्वोत्तर में अवस्थित है। (११) रैवतक -
पार्जिटर रैवतक की पहचान काठियावाड के पश्चिम भाग में वरदा की पहाड़ी से करते हैं। ज्ञातासूत्र के अनुसार द्वारका के उत्तर-पूर्व में रैवतक नामक पर्वत था। अन्तकृत्दशा में भी यही वर्णन है। त्रिषष्टिशलाका पुरुषचरित्र के अनुसार द्वारका के समीप पूर्व में रैवतक गिरि, दक्षिण में माल्यवान शैल, पश्चिम में सौमनस पर्वत और उत्तर में गंधमादन गिरि हैं। महाभारत की दृष्टि से रैवतक कुशस्थली के सन्निकट था। वैदिक हरिवंशपुराण के अनुसार यादव मथुरा छोड़कर सिन्धु में गये और समुद्र किनारे रैवतक पर्वत से न अतिदूर और न अधिक निकट द्वारका बसाई। आगम साहित्य में रैवतक पर्वत का स्वर्वथा स्वाभाविक वर्णन मिलता है।
भगवान् अरिष्टनेमि अभिनिष्क्रमण के लिए निकले, वे देव और मनुष्यों से परिवृत शिविकारत्न में आरूढ़ हुए और रैवतक पर्वत पर अवस्थित हुए।११ राजीमती भी संयम लेकर द्वारका से रैवतक पर्वत पर
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१. मज्झिमनिकाय, (सारनाथ १६३३) २. मज्झिमनिकाय, अभयराजकुमार सुत्तन्त, पृ. २३४
मज्झिमनिकाय, चलसकलोदायी, सुत्तन्त, पृ. ३०५. ४. हिस्ट्री ऑव धर्मशास्त्र, जिल्द ४, पृ.७९४-९५. ५. ज्ञाताधर्मकथा, १/५, सू. ५८ ६. अन्तकृद्दशांग
तस्या:पुरो रैवतकोऽपाच्यामासीत्तु माल्यवान् । सोमनसोऽद्रिः प्रतीच्यामुदीच्यां गंधमादनः।
-त्रिषष्टि, पर्व ८, सर्ग ५,श्लोक ४१८ ८. कुशस्थली पुरीं रम्यां रैवतेनोपशोभिताम्।
-महाभारत, सभापर्व, अ. १४, श्लोक ५० ९. हरिवंशपुराण २/५५. १०. ज्ञाताधर्मकथा १/५, सूत्र ५८ ११. देव-मणुस्स-परिवुडो, सीयारयणं तओ समारूढो।
निक्खमिय बारगाओ, रेवयम्मि ठिओ भगवं ।।
-उत्तराध्ययन २२।२२