Book Title: Agam 08 Ang 08 Anantkrut Dashang Sutra Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni, Divyaprabhashreeji, Devendramuni, Ratanmuni, Kanhaiyalal Maharaj
Publisher: Agam Prakashan Samiti

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Page 227
________________ १८६] [अन्तकृद्दशा बौद्ध परम्परा के अनुसार यह जम्बूद्वीप दस हजार योजन बड़ा है। इसमें चार हजार योजन जल से भरा होने के कारण समुद्र कहा जाता है और तीन हजार योजन में मानव रहते हैं, शेष तीन हजार योजन में चौरासी हजार कूटों (चोटियों) से सुशोभित चारों ओर बहती ५०० नदियों से ऊँचा हिमवान पर्वत है। ___ उल्लिखित वर्णन से स्पष्ट है कि जिसे हम भारत के नाम से जानते हैं वही बौद्धों में जम्बूद्वीप के नाम से विख्यात है। (५) द्वारका (द्वारवती) ___भारत की प्राचीन प्रसिद्ध नगरियों में द्वारका का अपना विशिष्ट स्थान रहा है। श्रमण और वैदिक दोनों ही संस्कृतियों के वाङ्मय में द्वारका की विस्तार से चर्चा है। (१) ज्ञाताधर्मकथा व अन्तगडदसाओ के अनुसार द्वारका सौराष्ट्र में थी। वह पूर्व-पश्चिम में बारह योजन लम्बी और उत्तर-दक्षिण में नव योजन विस्तीर्ण थी। वह स्वयं कुबेर द्वारा निर्मित सोने के प्राकार वाली थी, जिस पर पांच वर्गों के नाना मणियों से सुसज्जित कपिशीर्षक-कंगूरे थे। वह बड़ी सुरम्य, अलकापुरी-तुल्य और प्रत्यक्ष देवलोक-सदृश थी। वह प्रासादिक दर्शनीय अभिरूप तथा प्रतिरूप थी। उसके उत्तर-पूर्व में रैवतक नामक पर्वत था। उसके पास समस्त ऋतुओं में फल-फूलों से लदा रहनेवाला नन्दनवन नामक सुरम्य उद्यान था। उस उद्यान में सुरप्रिय यक्षायतन था। उस द्वारका में श्रीकृष्ण वासुदेव अपने सम्पूर्ण राजपरिवार के साथ रहते थे। बृहत्कल्प के अनुसार द्वारका के चारों ओर पत्थर का प्राकार था। वण्हिदसाओ में भी यही द्वारका का वर्णन मिलता है।११ _ आचार्य हेमचन्द्र ने द्वारका का वर्णन करते हुए लिखा है कि वह बारह योजन आयाम वाली और नव योजन विस्तृत थी। वह रत्नमयी थी। उसके आसपास १८ हाथ ऊंचा, ९ हाथ भूमिगत और १२ हाथ ५. वही. खण्ड १, पृ. ९४१ ६. वही. खण्ड २, पृ. १३२५-१३२६ ७. (क) इण्डिया ऐज डेस्क्राइब्ड इन अर्ली टेक्सट्स आव बुद्धिज्म ऐंड जैनिज्म पृ१. विमलचरण लॉ लिखित, (ख) जातक प्रथम खण्ड, पृ. २८२, ईशानचन्द्र घोष (ग) भारतीय इतिहास की रूपरेखा भा.१ पृ. ४, लेखक-जयचंद्र विद्यालंकार (घ) पाली इंगलिश डिक्शनरी पृ.११२, टी. डब्ल्यू रीस डेविस तथा विलियम स्टेड (ङ) सुत्तनिपात की भूमिका-धर्मरक्षित पृ.१ (च) जातक-मानचित्र-भदन्त आनन्द कौशल्यायन ८. (क) ज्ञाताधर्मकथा १/१६, सूत्र ११३ (ख) अन्तगडदसाओ ९. ज्ञाताधर्म कथा १/१६, सूत्र ५८ १०. बृहत्कल्प भाग २, पृ. २५१ ११. वण्हिदसाओ

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