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[अन्तकृद्दशा (३)चम्पा
चम्पा अंग देश की राजधानी थी। कनिंघम ने लिखा है- भागलपुर से ठीक २४ मील पर पत्थरघाट है। यहीं इसके आस-पास चम्पा की उपस्थिति होनी चाहिए। इसके पास ही पश्चिम की ओर एक बड़ा गांव है, जिसे चम्पानगर कहते हैं और एक छोटा-सा गांव है, जिसे चम्पापुर कहते हैं। संभव है, ये दोनों प्राचीन राजधानी चम्पा की सही स्थिति के द्योतक हों।
फाहियान ने चम्पा को पाटिलपुत्र से १८ योजन पूर्व दिशा में गंगा के दक्षिण तट पर स्थित माना
महाभारत की दृष्टि से चम्पा का प्राचीन नाम 'मालिनी' था। महाराजा चम्प ने उसका नाम चम्पा रखा।
स्थानांग में जिन दस राजधानियों का उल्लेख हुआ है और दीर्घनिकाय में जिन छह महानगरियों का वर्णन किया गया है, उनमें एक चम्पा भी है। औपपातिकसूत्र में इसका विस्तार से निरूपण है। दशवैकालिक सूत्र की रचना आचार्य शय्यंभव ने यहीं पर की थी।६
सम्राट् श्रेणिक के निधन के पश्चात् कूणिक (अजातशत्रु) को राजगृह में रहना अच्छा न लगा और एक स्थान पर चंपा के सुन्दर उद्यान को देखकर चम्पानगर बसाया। गणि कल्याणविजयजी के अभिमतानुसार चम्पा पटना से पूर्व (कुछ दक्षिण में) लगभग सौ कोस पर थी। आजकल इसे चम्पानाला कहते हैं। यह स्थान भागलपुर से तीन मील दूर पश्चिम में है।
चम्पा के उत्तर-पूर्व में पूर्णभद्र नाम का रमणीय चैत्य था, जहाँ पर भगवान् महावीर ठहरते थे।
चम्पा उस युग में व्यापार का प्रमुख केन्द्र था, जहाँ पर माल लेने के लिए दूर-दूर से व्यापारी आते थे और चम्पा के व्यापारी भी माल लेकर मिथिला, अहिच्छत्रा और पिहुँड (चिकाकोट और कलिंगपट्टम का एक प्रदेश) आदि में व्यापारार्थ जाते थे। चम्पा और मिथिला में साठ योजन का अन्तर था।
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१. दी एन्शियण्ट ज्योग्राफी ऑफ इण्डिया, पृ.५४६-५४७
ट्रैवेल्स ऑफ फाहियान, पृ. ६५. महाभारत १२/५/१३४ स्थानांग १०/७१७ औपपतिक, चम्पा वर्णन
जैन आगम साहित्य में भारतीय समाज, पृ. ४६४ ७. विविध तीर्थकल्प, पृ. ६५ ८. श्रमण भगवान महावीर, पृ. ३६९ ९. (क) ज्ञाताधर्मकथा ८, पृ९७, ९, पृ. १२१-१५ पृ. १५७
(ख) उत्तराध्ययन २१/२