Book Title: Agam 08 Ang 08 Anantkrut Dashang Sutra Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni, Divyaprabhashreeji, Devendramuni, Ratanmuni, Kanhaiyalal Maharaj
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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[अन्तकृद्दशा (११) स्कन्दक मुनि
स्कन्दक संन्यासी श्रावस्ती नगरी के रहने वाले गद्दभालि परिव्राजक का शिष्य था और गौतम स्वामी का पूर्व मित्र था। भगवान् महावीर के शिष्य पिङ्गलक निर्ग्रन्थ के प्रश्नों का उत्तर नहीं दे सका; फलतः श्रावस्ती के लोगों से जब सुना कि भगवान् महावीर कृतंगला नगर के बाहर छत्र-पलाश उद्यान में पधारे हैं, तो स्कन्दक भी भगवान् के पास जा पहुंचा। अपना समाधान मिलने पर वहीं पर भगवान् का शिष्य हो गया।
स्कन्दक मुनि ने स्थविरों के पास रहकर ११ अंगों का अध्ययन किया। भिक्षु की १२ प्रतिमाओं की क्रम से साधना की, आराधना की।
गुणरत्नसंवत्सर तप किया। शरीर दुर्बल, क्षीण और अशक्त हो गया। अन्त में राजगृह के समीप विपुलगिरि पर जाकर एक मास की संलेखना की। काल करके १२वें देवलोक में गया। वहाँ से चयकर महाविदेहवास से सिद्ध होगा।
स्कन्दक मुनि की दीक्षा-पर्याय १२ वर्ष की थी। (१२) सुधर्मा स्वामी
ये कोल्लाग संनिवेश के निवासी अग्निवैश्यायन गोत्रीय ब्राह्मण थे। इनके पिता धम्मिल थे और माता भद्दिला थीं। पांच सौ छात्र इनके पास अध्ययन करते थे। पचास वर्ष की अवस्था में शिष्यों के साथ प्रवज्या ली। बयालीस वर्ष पर्यन्त छद्मावस्था में रहे। महावीर के निर्वाण के बाद बारह वर्ष व्यतीत होने पर केवली हुए और आठ वर्ष तक केवली अवस्था में रहे।
___श्रमण भगवान् के सर्व गणधरों में सुधर्मा दीर्घजीवी थे, अन्यान्य गणधरों ने अपने-अपने निर्वाण के समय अपने-अपने गण सुधर्मा को समर्पित कर दिये थे।
__ महावीर-निर्वाण के १२ वर्ष बाद सुधर्मा को केवलज्ञान प्राप्त हुआ और बीस वर्ष के पश्चात् सौ वर्ष की अवस्था में मासिक अनशन-पूर्वक राजगृह के गुणशीलचैत्य में निर्वाण प्राप्त किया। (१३) श्रेणिक राजा
मगध देश का सम्राट् था। अनाथी मुनि से प्रतिबोधित होकर भगवान् महावीर का परम भक्त हो गया था। ऐसी एक जन-श्रुति है।
राजा श्रेणिक का वर्णन जैन ग्रन्थों तथा बौद्ध ग्रन्थों में प्रचुर मात्रा में मिलता है । इतिहासकार कहते हैं कि श्रेणिक राजा हैहय कुल और शिशुनाग वंश का था।
बौद्ध ग्रन्थों में 'सेनिय' और 'बिंबिसार' ये दो नाम मिलते हैं। जैन ग्रन्थों में 'सेणिय, भिंभिसार और भंभासार'-ये नाम उपलब्ध हैं। १. (क) जीवंते चेव भट्टारए णवहिं जणेहिं अज्ज सुधम्मस्स गणो णिक्खित्तो दीहाउग्गेत्ति णातुं ।
___ -कल्पसूत्र चूर्णि २०१. (ख) परिनिव्वुया गणहरा जीवंते नायए नव जणा उ, इंदभूई सुहम्मो अ, रायगिहे निव्वुए वीरे।
-आवश्यक नियुक्ति गा. ६५८. २. आवश्यक नियुक्ति, ६५५.