Book Title: Agam 08 Ang 08 Anantkrut Dashang Sutra Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni, Divyaprabhashreeji, Devendramuni, Ratanmuni, Kanhaiyalal Maharaj
Publisher: Agam Prakashan Samiti

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Page 226
________________ परिशिष्ट २] (४) जम्बूद्वीप जैनागमों की दृष्टि से इस विशाल भूमण्डल के मध्य में जम्बूद्वीप है। इसका विस्तार एक लक्ष योजन है और यह सबसे लघु है। इसके चारों ओर लवणसमुद्र है । लवणसमुद्र के चारों ओर धातकीखण्ड द्वीप है। इसी प्रकार आगे भी एक द्वीप और एक समुद्र है और उन सब द्वीपों और समुद्रों की संख्या असंख्यात है।' अन्तिम समुद्र का नाम स्वयंभूरमण समुद्र है। जम्बूद्वीप से दूना विस्तार वाला लवणसमुद्र और लवणसमुद्र से दुगुना विस्तृत धातकीखण्ड है। इस प्रकार द्वीप और समुद्र एक दूसरे से दूने विस्तृत होते चले गये हैं। इसमें शाश्वत जम्बूवृक्ष होने के कारण इस द्वीप का नाम जम्बूद्वीप पड़ा । जम्बूद्वीप के मध्य में सुमेरु नामक पर्वत है जो एक लाख योजन ऊंचा है। ७ जम्बूद्वीप का व्यास एक लाख योजन है।' इसकी परिधि ३,१६,२२७ योजन, ३ कोस १२८ धनुष, १३ ॥ अंगुल, ५ यव और १ यूका है। इसका क्षेत्रफल ७,९०,५६,९४,१५० योजन १ । । । कोस, १५ धनुष और २ ।। हाथ है । १० श्रीमद्भागवत में सात द्वीपों का वर्णन है । उसमें जम्बूद्वीप प्रथम है । ११ बौद्ध दृष्टि से चार महाद्वीप हैं, उन चारों के केन्द्र में सुमेरु है। सुमेरु के पूर्व में पुव्व विदेह १२ पश्चिम में अपरगोयान अथवा अपर गोदान १३ उत्तर में उत्तर कुरु१४ और दक्षिण में जम्बूद्वीप है ।१५ १. २. ३. ४. ५. ६. ७. ८. [१८५ लोकप्रकाश सर्ग १५, श्लोक ६ वही. श्लोक १८ वही. श्लोक २६ वही. श्लोक २८ ९. वही. १५ / ३१-३२ जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति सटीक वक्षस्कार ४, सू. १०३, पत्र ३५९ - ३६० वही. ४ / ११३. पत्र ३५९ / २ (क) समवायांग सूत्र १२४, पत्र २०७/२, प्र. जैन धर्म प्रचारक सभा, भावनगर (ख) जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति सटीक वक्षस्कार १/१०/६७ (ग) हरिवंशपुराण ५ / ४-५. (क) लोकप्रकाश १५/३४-३४. (ख) हरिवंशपुराण ५/४-५. १०. (क) लोकप्रकाश १५/३६-३७ (ख) हरिवंशपुराण ५ / ६-७ ११. श्रीमद्भागवत प्र. खण्ड, स्कंध ४, अ. १, पृ. ५४६ १२. डिक्शनरी आव पाली प्रापर नेम्स, खण्ड २, पृ. २३६ १३. वही. खण्ड १, पृ. ११७ १४. वही. खण्ड १, पृ. ३५५ १५. वही. खण्ड १ पृ. ९४१

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