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[ अन्तकृद्दशा
दत्तियां होती हैं। इस प्रकार सभी मिलाकर कुल एक सौ छियानवे (१९६) दत्तियां हुईं। इस तरह सूत्रानुसार इस प्रतिमा का आराधन करके सुकृष्णा आर्या आर्य चन्दना आर्या के पास आई और उन्हें वंदना नमस्कार करके इस प्रकार बोली- 'हे आर्ये ! आपकी आज्ञा हो तो मैं 'अष्ट- अष्टमिका' भिक्षुप्रतिमा तप अंगीकार करके विरूं ।'
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आर्या चन्दना ने कहा – हे देवानुप्रिये ! जैसे तुम्हें सुख हो वैसा करो। धर्मकार्य में प्रमाद मत करो। विवेचन - तीसरे वर्ग के १९ वें सूत्र में वर्णित भिक्षुप्रतिमा से यह सप्त सप्तमिका भिक्षुप्रतिमा अलग है। उससे इसका कोई संबंध नहीं है। सातवीं भिक्षुप्रतिमा का समय एक मास है और उसमें सात दत्तियाँ भोजन की और सात दत्तियां पानी की ग्रहण की जाती हैं परन्तु प्रस्तुत अध्ययन में वर्णित सप्त सप्तमिका भिक्षुप्रतिमा का समय ४९ दिन-रात्रि का है। यह सात सप्ताहों में पूर्ण होती है (७ × ७ = ४९) । प्रथम सप्ताह में एक दत्ति अन्न की और एक दत्ति पानी की ग्रहण की जाती है, दूसरे में दो-दो, तीसरे में तीनतीन, चौथे, पांचवें, छट्ठे, सातवें में एक-एक की वृद्धि क्रमश: करते हुए सातवें तक सात-सात दत्तियां अन्न पानी की ग्रहण की जाती हैं। इस सप्त सप्तमिका भिक्षुप्रतिमा में समस्त दत्तियों की संख्या १९६ होती । अतः इस भिक्षुप्रतिमा का उक्त बारह भिक्षुप्रतिमाओं के साथ कोई सम्बन्ध नहीं है । इसका स्थापनायंत्र इस प्रकार है.
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सत्तसत्तमियाभिक्खू पडिमा
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४९ दिवस १९६ दत्तियां
९ - तए णं सा सुकण्हा अज्जा अज्जचंदणाए अज्जाए अब्भणुण्णाया समाणी अट्ठट्ठमियं भिक्खुपडिमं उवसंपज्जित्ता णं विहरइ -
पढमे अट्टए एक्केक्कं भोयणस्स दत्तिं पडिगाहेइ, एक्केक्कं पाणयस्स जाव [ दत्तिं पडिगाहेड़ ], अट्टमे अट्ठए अट्ठ भोयणस्स पडिगाहेइ, अट्ठट्ठ पाणयस्स ।