Book Title: Agam 08 Ang 08 Anantkrut Dashang Sutra Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni, Divyaprabhashreeji, Devendramuni, Ratanmuni, Kanhaiyalal Maharaj
Publisher: Agam Prakashan Samiti

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Page 200
________________ अष्टम वर्ग] [१५९ कामगुणयुक्त पारणा किया, करके पचौला किया करके सर्वकामगुणयुक्त पारणा किया, करके उपवास किया, करके सर्वकामगुणयुक्त पारणा किया, करके बेला किया, करके सर्वकामगुणयुक्त पारणा किया करके तेला किया, करके सर्वकामगुणयुक्त पारणा किया इस प्रकार यह लघु (क्षुद्र-क्षुल्लक) सर्वतोभद्र तप-कर्म की प्रथम परिपाटी तीन माह और दस दिनों में पूर्ण होती है। इसकी सूत्रानुसार सम्यग्रीति (विधि) से आराधना करके आर्या महाकृष्णा ने इसकी दूसरी परिपाटी में उपवास किया और विगय रहित पारणा किया। जैसे रत्नावली तप में चार परिपाटियां बताई गईं, वैसे ही इस में भी होती हैं। पारणा भी उसी प्रकार समझना चाहिये। इसकी प्रथम परिपाटी में पूरे सौ दिन लगे, जिसमें पच्चीस दिन पारणा के और ७५ दिन उपवास के होते हैं। चारों परिपार्टियों का सम्मिलित काल एक वर्ष, एक मास और दस दिन हुआ। विवेचन-'खुड्डागं सव्वओभई पडिमं' में क्षुल्लक शब्द महद् की अपेक्षा से है। सर्वतोभ्रद्र तप दो प्रकार का है. एक महद 'एक लघ। यह लघ है. इस बात को प्रकट करने के लिये क्षल्लक शब्द का प्रयोग किया गया है। गणना करने पर जिसके अंक सम अर्थात् बराबर हों, विषम न हों, जिधर से गणना की जाए उधर से ही समान हों, उसे सर्वतोभद्र कहते हैं। इसमें एक से लेकर पांच अंक दिये जाते हैं, चारों ओर जिधर से चाहें गिन लें, सभी ओर १५ ही संख्या होती है। एक से पांच तक सभी ओर से गिनने पर एक जैसी संख्या होने से इसे सर्वतोभद्र कहा जाता है। यह प्रस्तुत यंत्र से स्पष्ट होती है। खुड्डया सव्वतोभद्द-पडिमा तपदिन ७५ पारणे २५ ।

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