Book Title: Agam 08 Ang 08 Anantkrut Dashang Sutra Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni, Divyaprabhashreeji, Devendramuni, Ratanmuni, Kanhaiyalal Maharaj
Publisher: Agam Prakashan Samiti

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Page 170
________________ षष्ठ वर्ग] [१२९ गौतम और अतिमुक्त कुमार का समागम १७-तए णं से अइमुत्ते कुमारे भगवं गोयमं अदूरसामंतेणं वीईवयमाणं पासइ, पासित्ता जेणेव भगवं गोयमे तेणेव उवागए, भगवं गोयम एवं वयासी 'के णं भंते! तुब्भे? किं वा अडह?' तए णं भंते गोयमे अइमुत्तं कुमारं एवं वयासी-'अम्हे णं देवाणुप्पिया! समणा निग्गंथा इरियासमिया जाव' गुत्तबंभयारी उच्च जाव(नीय-मज्झिमाई कुलाइं घरसमुदाणस्स भिक्खायरियाए) अडामो।' तए णं अइमुत्ते कुमारे भगवं गोयम एवं वयासी-एह णं भंते! तुब्भे जा णं अहं तुब्भं भिक्खं दवावेमि त्ति कटु भगवं गोयमं अंगुलीए गेण्हइ, गेण्हित्ता जेणेव सए गिहे तेणेव उवागए। तए णं सा सिरिदेवी भगवं गोयमं एजमाणं पासइ, पासित्ता हट्ठतुट्ठा आसणाओ अब्भुढेइ, अब्भुढेत्ता जेणेव भगवं गोयमे तेणेव उवागया। भगवं गोयमं तिक्खुत्तो आयाहिणं-पयाहिणं करेइ, करेत्ता, वंदइ, नमसइ, वंदित्ता नमंसित्ता विउलेणं असण-पाण-खाइम-साइमेणं पडिलाभेइ, पडिलाभेत्ता पडिविसजेइ। तए णं से अइमुत्ते कुमारे भगवं गोयमं एवं वयासी'कहि णं भंते! तुब्भे परिवसह?' तए णं से भगवं गोयमे अइमुत्तं कुमारं एवं वयासी 'एवं खलु देवाणुप्पिया! मम धम्मायरिए धम्मोवदेसए समणे भगवं महावीरे आइगरे जाव' संपाविउकामे इहेव पोलासपुरस्स नयरस्स बहिया सिरिवणे उजाणे अहापडिरूवं ओग्गहं ओगिण्हित्ता संजमेणं तवसा अप्पाणं भावेमाणे विहरइ। तत्थ णं अम्हे परिवसामो। उस समय अतिमुक्त कुमार ने भगवान् गौतम को पास से जाते हुए देखा । देखकर जहां भगवान् गौतम थे वहां आये और भगवान् गौतम से इस प्रकार बोले 'भंते ! आप कौन हैं? और क्यों घूम रहे हैं?' तब भगवान् गौतम ने अतिमुक्त कुमार को इस प्रकार कहा- 'हे देवानुप्रिय! हम श्रमण निर्ग्रन्थ हैं, ईर्यासमिति आदि सहित यावत् ब्रह्मचारी हैं, छोटे-बड़े कुलों में भिक्षार्थ भ्रमण करते हैं।' ___यह सुनकर अतिमुक्त कुमार भगवान् गौतम से इस प्रकार बोले-'भगवन्! आप आओ ! मैं आपको भिक्षा दिलाता हूं।' ऐसा कहकर अतिमुक्त कुमार ने भगवान् गौतम की अंगुली पकड़ी और उनको अपने घर ले आये। श्रीदेवी महारानी भगवान् गौतम को आते देख बहुत प्रसन्न हुई यावत् आसन से उठकर भगवान् गौतम के सम्मुख आई। भगवान् गौतम को तीन बार दक्षिण तरफ से प्रदक्षिणा करके वंदना की, नमस्कार किया फिर विपुल अशन, पान, खादिम और स्वादिम से प्रतिलाभ दिया यावत् विधिपूर्वक विसर्जित किया। इसके बाद भगवान् गौतम से अतिमुक्त कुमार इस प्रकार बोले १. वर्ग ३, सूत्र १८. २. वर्ग १, अ. १, सूत्र २.

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