Book Title: Agam 08 Ang 08 Anantkrut Dashang Sutra Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni, Divyaprabhashreeji, Devendramuni, Ratanmuni, Kanhaiyalal Maharaj
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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षष्ठ वर्ग ]
तए णं समणे भगवं महावीरे अइमुत्तस्स कुमारस्स तीसे य धम्मकहा।
तब अतिमुक्त कुमार भगवान् गौतम से इस प्रकार बोले - हे पूज्य ! मैं भी आपके साथ श्रमण भगवान् महावीर को वंदन करने चलता हूँ ।
श्री गौतम ने कहा – 'देवानुप्रिय ! जैसे तुम्हें सुख हो वैसा करो !'
तब अतिमुक्त कुमार गौतम स्वामी के साथ श्रमण भगवान् महावीर स्वामी के पास आये और आकर श्रमण भगवान् महावीर को तीन बार दक्षिण तरफ से प्रदक्षिणा की। फिर वंदना करके पर्युपासना करने लगे ।
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इधर गौतम स्वामी भगवान् महावीर की सेवा में उपस्थित हुए और गमनागमन सम्बन्धी प्रतिक्रमण किया तथा भिक्षा लेने में लगे हुए दोषों की आलोचना की । फिर लाया हुआ आहार- पानी भगवान् को दिखाया और दिखाकर संयम तथा तप से अपनी आत्मा को भावित करते हुए विचरने लगे ।
तब श्रमण भगवान् महावीर ने अतिमुक्त कुमार को तथा महती परिषद् को धर्म-कथा कही । अतिमुक्त की प्रव्रज्याः सिद्धि
१९- तणं से अइमुत्ते कुमारे समणस्स भगवओ महावीरस्स अंतिए धम्मं सोच्चा निसम्म हट्ठतुट्ठे जाव' जं नवरं देवाणुप्पिया! अम्मापियरो आपुच्छामि तए णं अहं देवाणुप्पियाणं अंतिए जावरे पव्वयामि ।
अहासुहं देवाणुप्पिया! मा पडिबंधं करेहि ।
तए णं से अइमुत्ते कुमारे जेणेव अम्मापियरो तेणेव उवागए जावरे [ उवागच्छित्ता अम्मापिऊणं पायवंदणं करेइ, करेत्ता एवं वयासी - ' एवं खलु अम्मयाओ! मए समणस्स भगवओ महावीरस्स अंतिए - धम्मे णिसंते, से वि य मे धम्मे इच्छिए पडिच्छिए अभिरुइए।' तए णं तस्स अइमुत्तस्स अम्मपियरो एवं वयासी – 'धन्नो सि तुमं जाया ! संपुन्नो सि तुमं जाया! कयत्थो सि तुमं जाया ! जं णं तुमे समणस्स भगवओ महावीरस्स अंतिए धम्मे णिसंते, से वि य ते धम्मे इच्छिए पडिच्छिए अभिरुइए । ' ]
तणं से अइमुत्ते कुमारे अम्मापियरो दोच्चं पि तच्चं पि एवं वयासी – एवं खलु अम्मयाओ! मए समणस्स भगवओ महावीरस्स अंतिए धम्मे निसंते। से वि य णं मे धम्मे इच्छिए, पडिच्छिए, अभिरुइए। तं इच्छामि णं अम्मयाओ ! तुब्भेहि अब्भणुण्णए समाणे समणस्स भगवओ महावीरस्स अंतिए मुंडे भवित्ता णं अगाराओ अणगारियं पव्वइत्तए ।
त णं तं अइमुत्तं कुमारं अम्मापियरो एवं वयासी
'बाले सि ताव तुमं पुत्ता! असंबुद्धे सि तुमं पुत्ता किं णं तुमं जाणसि धम्मं ? '
तणं से अइमुत्ते कुमारे अम्मापियरो एवं वयासी - ' एवं खलु अहं अम्मयाओ ! जं चेव । जाणामि तं चेव न जाणामि, जं चेव न जाणामि तं चेव जाणामि ।'
तए णं तं अइमुत्तं कुमारं अम्मापियरो एवं वयासी
२. वर्ग ५, सूत्र ४.
१.
३.
वर्ग ३, सूत्र १८.
वर्ग ३, सूत्र १८.