Book Title: Agam 08 Ang 08 Anantkrut Dashang Sutra Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni, Divyaprabhashreeji, Devendramuni, Ratanmuni, Kanhaiyalal Maharaj
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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अष्टम वर्ग प्रथम अध्ययन
काली
उत्क्षेप
१-जड़ णं भंते! समणेणं भगवया महावीरेणं अट्ठमस्स अंगस्स अंतगडदसाणं सत्तमस्स वग्गस्स अयमटे पण्णत्ते. अदमस्स वग्गस्स के अटे पण्णते?
एवं खलु जंबू! समणेणं भगवया महावीरेणं अट्ठमस्स अंगस्स अंतगडदसाणं अट्ठमस्स वग्गस्स दस अज्झयणा पण्णत्ता, तं जहासंगहणी गाहा
(१). काली (२). सुकाली (३). महाकाली,(४). कण्हा (५). सुकण्हा (६). महाकण्हा। . (७). वीरकण्हा य बोधव्वा, (८). रामकण्हा तहेव य। (९). पिउसेणकण्हा नवमी, दसमी (१०). महासेणकण्हा य ॥१॥
जइ णं भंते! समणेणं भगवया महावीरेणं अट्ठमस्स अंगस्स अंतगडदसाणं दस अज्झयणा पण्णत्ता, पढमस्स णं भंते ! अज्झयणस्स अंतगडदसाणं के अटे पण्णत्ते?
___ एवं खलु जंबू ! तेणं कालेणं तेणं समएणं चंपा नामं नयरी होत्था। पुण्णभद्दे चेइए। तत्थ णं चंपाए नयरीए कोणिए राया, वण्णओ। तत्थ णं चंपाए नयरीए सेणियस्स रण्णो भज्जा, कोणियस्स रण्णो चुल्लकमाउया, काली नामं देवी होत्था, वण्णओ। जहा नंदा जाव' सामाइयमाइयाई एक्कारस अंगाई अहिजइ। बहूहिं चउत्थ जाव अप्पाणं भावेमाणे विहरइ।
श्री जंबूस्वामी ने आर्य सुधर्मास्वामी से निवेदन किया- "भगवन्! श्रमण यावत् मुक्तिप्राप्त भगवान् महावीर ने आठवें अंग अंतगडदशा के आठवें वर्ग का क्या अर्थ प्रतिपादन किया है?"
श्री सुधर्मास्वामी ने कहा-“हे जंबू! श्रमण यावत् मुक्तिप्राप्त प्रभु महावीर ने आठवें अंग अंतगडदशा के आठवें वर्ग के दश अध्ययन कहे हैं, जो इस प्रकार हैं
गाथार्थ- (१). काली, (२). सुकाली (३). महाकाली, (४). कृष्णा, (५). सुकृष्णा, (७). महाकृष्णा, (७). वीरकृष्णा (८). रामकृष्णा, (९). पितुसेनकृष्णा और (१०). महासेनकृष्णा।
श्री जंबूस्वामी ने पुनः प्रश्न किया-'भगवन्! यदि आठवें वर्ग के दश अध्ययन कहे हैं तो प्रथम अध्ययन का श्रमण यावत् मुक्तिप्राप्त महावीर ने क्या अर्थ कहा है।'
आर्य सधर्मास्वामी ने कहा -'हे जंब! उस काल और उस समय चम्पा नाम की नगरी थी। वहाँ पूर्णभद्र नाम का उद्यान था। वहां कोणिक राजा राज्य करता था। उस चम्पानगरी में श्रेणिक राजा की रानी
१.
वर्ग ५, सूत्र ४, ६
२. वर्ग १, सूत्र ९