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[अन्तकृद्दशा
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तपस्याकाल/एकपरिपाटीकाकाल १वर्ष,३ मास,२२ दिन
'चार परिपाटी का काल ५वर्ष, २ मास, २८ दिन तप के दिन [.
एक परिपाटी के तपोदिन १ वर्ष, - २४ दिन
चार परिपाटी के तपोदिन ४ वर्ष,३ मास,६ दिन पर एक परिपाटी के पारणे ८८
चार परिपाटी के पारणे ३५२
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रत्नावली तप
का . स्थापना-यन्त्र
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विवेचन-रयणावली का अर्थ वृत्तिकार' के शब्दों में इस प्रकार है-रयणावलि त्ति, रत्नावली आभरणविशेषः, रत्नावलीतपः रत्नावली। यथाहि रत्नावली उभयतः आदौ सूक्ष्म-स्थूल-स्थूलतर-विभागकाहलिकाख्य-सौवर्णावयवद्वययुक्ता भवति, पुनर्मध्यदेशे स्थूलविशिष्टमण्यलंकृता च भवति, एवं यत्तपः पट्टादावुपदर्यमानमिममाकारं धारयति तद्रत्नावलीत्युच्यते-अर्थात् रत्नावली एक आभूषण विशेष होता है। उसकी रचना के समान जिस तप का आराधन किया जाये उसको रत्नावली तप कहते हैं। जैसे रत्नावली भूषण दोनों ओर से आरम्भ में सूक्ष्म फिर स्थूल, फिर उस से अधिक स्थूल, मध्य में विशेष स्थूल मणियों से युक्त होता है, वैसे ही जो तप आरम्भ में स्वल्प फिर अधिक, फिर विशेष अधिक होता चला जाता है,
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अन्तगडसूत्र-सवृत्ति-पत्र-२५