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[ अन्तकृद्दशा
'कहं णं तुमं पुत्ता! जं चेव जाणसि जाव (तं चेव न जाणसि? जं चेव न जाणसि ) तं चेव
जाणसि ?
तणं से अइमुत्ते कुमारे अम्मापियरो एवं वयासी
'जाणामि अहं अम्मयाओ! जहा जाएणं अवस्स मरियव्वं, न जाणामि अहं अम्मयाओ ! - काहे वा कहिं वा कहं वा कियच्चिरेण वा? न जाणामि णं अम्मयाओ! केहिं कम्माययणेहिं जीवा नेरइय-तिरिक्खजोणिय - मणुस्स- देवेसु उववज्जंति, जाणामि णं अम्मयाओ जहा सएहिं कम्माययणेहिं जीवा नेरइय जाव उववज्जंति । एवं खलु अहं अम्मयाओ! जं चेव जाणामि तं चेव न जाणामि, जं चेव न जाणामि तं चेव जाणामि । तं इच्छामो णं अम्मयाओ! तुब्भेहिं अब्भणुण्णाए जाव' पव्वइत्तए।'
तए णं तं अइमुत्तं कुमारं अम्मपियरो जाहे नो संचाएंति बहूहिं आघवणाहिं जावरे तं इच्छामो ते जाया ! एगदिवसमवि रायसिरिं पासेत्तए । तए णं से अइमुत्ते अम्मपिउवयण मणुयत्तमाणे तुसिणीए संचिट्ठइ। अभिसेओ जहां महाबलस्स । निक्खमणं । जाव सामाइयमाइयाई एक्कारस अंगाई अज्जि । बहूहिं वासाइं सामण्णपरियागं पाउणइ, गुणरयणं तवोकम्मं जाव' विपुले सिद्धे ।
अतिमुक्तकुमार श्रमण भगवान् महावीर के पास धर्मकथा सुनकर और उसे धारण कर बहुत प्रसन्न और संतुष्ट हुआ । विशेष यह है कि उसने कहा - 'देवानुप्रिय ! मैं माता-पिता से पूछता हूं । तब मैं देवानुप्रिय के पास यावत् दीक्षा ग्रहण करूंगा।'
भगवान् महावीर बोले- 'हे देवानुप्रिय ! जैसे तुम्हें सुख हो वैसा करो। पर धर्म कार्य में प्रमाद मत
करो।'
तत्पश्चात् अतिमुक्त कुमार अपने माता-पिता के पास पहुंचे। उनके चरणों में प्रणाम किया और कहा - ' माता-पिता! मैंने श्रमण भगवान् महावीर के निकट धर्म श्रवण किया है। वह धर्म मुझे इष्ट लगा है, पुन: पुन: इष्ट प्रतीत हुआ है और खूब रुचा है। '
अतिमुक्तकुमार के माता-पिता ने कहा - वत्स ! तुम धन्य हो, वत्स ! तुम पुण्यशाली हो, वत्स ! तुम कृतार्थ हो कि तुमने श्रमण भगवान् महावीर के निकट धर्म श्रवण किया है और वह धर्म तुम्हें इष्ट पुनःपुनः इष्ट और रुचिकर हुआ I
तब अतिमुक्त कुमार ने दूसरी और तीसरी बार भी यही कहा – ' माता-पिता ! मैंने श्रमण भगवान् महावीर के निकट धर्म सुना है और वह धर्म मुझे इष्ट, प्रतीष्ट और रुचिकर हुआ है। अतएव मैं हे मातापिता! आपकी अनुमति प्राप्त कर श्रमण भगवान् महावीर के निकट मुण्डित होकर, गृहत्याग करके अनगार-दीक्षा ग्रहण करना चाहता हूं।'
इस पर माता-पिता अतिमुक्त कुमार से इस प्रकार बोले- 'हे पुत्र ! अभी तुम बालक हो, असंबुद्ध हो। अभी तुम धर्म को क्या जानो ?'
तब अतिमुक्त कुमार ने माता-पिता से इस प्रकार कहा - 'हे माता - पिता ! मैं जिसे जानता हूं उसे नहीं जानता हूं और जिसको नहीं जानता हूं उसको जानता हूं ।'
१. इसी में
३ - ४ वर्ग ३, सूत्र १८
२. वर्ग ६, सूत्र १८
५. वर्ग १, सूत्र ९