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[ अन्तकृद्दशा
औपपातिकसूत्र से समझ लेना चाहिए। महाराजा विजय का पुत्र और श्रीदेवी का आत्मज अतिमुक्त नाम का कुमार था जो अतीव सुकुमार था ।
उस काल और उस समय श्रमण भगवान् महावीर क्रमशः विचरते हुए, एक ग्राम से दूसरे ग्राम को पावन करते हुए और शारीरिक खेद से रहित - संयम में आने वाली बाधा - पीड़ा से रहित विहार करते हुए पोलासपुर नगर के श्रीवन उद्यान में पधारे।
उस काल, उस समय श्रमण भगवान् महावीर के ज्येष्ठ शिष्य इन्द्रभूति, व्याख्याप्रज्ञप्ति में कहे अनुसार निरन्तर बेले- बेले का तप करते हुए संयम और तप से आत्मा को भावित करते हुए विचरते थे । पार के दिन पहली पौरिसी में स्वाध्याय, दूसरी पौरिसी में ध्यान और तीसरी पौरिसी में शारीरिक शीघ्रता से रहित, मानसिक चपलता रहित, आकुलता और उत्सुकता रहित होकर मुखवस्त्रिका की प्रतिलेखना करते हैं और फिर पात्रों और वस्त्रों की प्रतिलेखना करते हैं। फिर पात्रों की प्रमार्जना करके और पात्रों को लेकर जहां श्रमण भगवान् महावीर विराजमान थे वहां आए, आकर भगवान् को वंदना - नमस्कार कर इस प्रकार निवेदन किया
'हे भगवन्! आज षष्ठभक्त के पारणे के दिन आपकी आज्ञा होने पर पोलासपुर नगर में ऊंच, नीच और मध्यम कुलों में भिक्षा की विधि के अनुसार भिक्षा लेने के लिये जाना चाहता हूं।'
श्रमण भगवान् महावीर ने कहा- देवानुप्रिय ! जिस प्रकार तुम्हें सुख हो, करो, उसमें विलम्ब न
करो ।
भगवान् की आज्ञा होने पर गौतमस्वामी भगवान् के पास से, श्रीवन उद्यान से निकले। निकल कर शारीरिक त्वरा और मानसिक चपलता से रहित एवं आकुलता व उत्सुकता से रहित युग ( धूसरा ) प्रमाण भूमि को देखते हुए ईर्यासमितिपूर्वक पोलासपुर नगर में आये। वहां ऊंच-नीच और मध्यम कुलों में भिक्षा की विधि अनुसार भिक्षा हेतु भ्रमण करने लगे ।
इधर अतिमुक्त कुमार स्नान करके यावत् शरीर की विभूषा करके बहुत से लड़के-लड़कियों, बालक-बालिकाओं और कुमार-कुमारियों के साथ अपने घर से निकले और निकल कर जहां इन्द्र- स्थान अर्थात् क्रीडास्थल था वहां आये। वहां आकर उन बालक-बालिकाओं के साथ खेलने लगे ।
उस समय भगवान् गौतम पोलासपुर नगर में सम्पन्न - असम्पन्न तथा मध्यम कुलों में यावत् भ्रमण करते हुए उस क्रीड़ास्थल के पास से जा रहे थे ।
विवेचन - प्रस्तुत सूत्र पोलासपुर के राजकुमार अतिमुक्त कुमार तथा श्रमण भगवान् महावीर के प्रथम गणधर गौतम के मधुर मिलन या प्रथम मुलाकात का वर्णन प्रस्तुत करता 1
इसमें अतिमुक्त जिनके साथ खेलते हैं, उनके लिये 'दारएहि य, डिंभएहि य, कुमारएहि य' शब्द का प्रयोग हुआ है । दारक, डिंभक तथा कुमार ये तीनों शब्द समानार्थी प्रतीत होते हैं परन्तु वृत्तिकार ने इनके विभिन्न अर्थ इस प्रकार बताये हैं- दारक - सामान्य बालक, अच्छी आयु वाला, डिंभक-छोटी आयु वाला, कुमार - अविवाहित ।
खेलने के स्थान को 'इंदट्ठाणे' कहा है। जिसका अर्थ होता है क्रीडास्थान, जहां पर इन्द्रस्तम्भनामक एक मोटा खम्भा गाड़कर बालक और बालिकाएं खेलते हैं।