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[ अन्तकृद्दशा
दशवें सुदर्शन गाथापति का वर्णन भी इसी प्रकार समझें। विशेष यह कि वाणिज्यग्राम नगर के बाहर तिपलाश नाम का उद्यान था। वहां दीक्षित हुए। पांच वर्ष का चारित्र पालकर विपुलगिरि से सिद्ध हुए ।
पूर्णभद्र गाथापति का वर्णन भी ऐसा ही है। विशेष यह कि वे वाणिज्यग्राम नगर के रहने वाले थे । पांच वर्ष का चारित्र पालन कर वह भी विपुलाचल पर्वत पर सिद्ध हुए ।
सुमनभद्र गाथापति श्रावस्ती नगरी के वासी थे। बहुत वर्षों तक चारित्र पालकर विपुलाचल पर सिद्ध हुए ।
सुप्रतिष्ठित गाथापति श्रावस्ती नगरी के थे और सत्ताईस वर्ष संयम पालकर विपुलगिरि पर सिद्ध
हुए ।
मेघ गाथापति का वृत्तान्त भी ऐसे ही समझें । विशेष- राजगृह के निवासी थे और बहुत वर्ष तक चारित्र पालकर विपुलगिरि पर सिद्ध हुए ।
विवेचन प्रस्तुत सूत्र में ग्यारह श्रावकों का उल्लेख किया गया है। ये सब मोह-ममत्व के बंधन तोड़कर तथा वैराग्य से नाता जोड़कर मंगलमय करुणासागर भगवान् महावीर के चरणों में पहुंचकर दीक्षित हो गये। इनके जीवन में जो-जो अंतर है व निम्नोक्त तालिका में दिया जा रहा है
नाम
१. श्री काश्यपजी
२. श्री क्षेमकजी
३. श्री धृतिधरजी
४. श्री कैलाशजी
५. श्री हरिचन्दनजी
६. श्री वारत्तजी
७. श्री सुदर्शनजी
८. श्री पूर्णभद्रजी
९. श्री सुमनभद्रजी
१०. श्री सुप्रतिष्ठितजी
११. श्री मेघकुमारजी
नगर
राजगृह नगर
काकंदी नगरी
काकंदी नगरी
साकेत नगर
साकेत नगर
राजगृह नगर
वाणिज्यग्राम नगर
वाणिज्यग्राम नगर
श्रावस्ती नगरी
श्रावस्ती नगरी
राजगृह नगर
उद्यान
गुणशील
द्युतिपलाश
दीक्षा - पर्याय निर्वाण स्थान
१६ वर्ष
विपुल पर्व
विपुल पर्वत
विपुल पर्वत
विपुल पर्वत
१६ वर्ष
१६ वर्ष
१२ वर्ष
१२ वर्ष
१२ वर्ष
०५ वर्ष
०५ वर्ष
अनेक वर्ष
२७ वर्ष
अनेक वर्ष
विपुल पर्वत
विपुल पर्वत
विपुल पर्वत
विपुल पर्वत
विपुल पर्वत
विपुल पर्वत
विपुल पर्वत