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षष्ठ वर्ग]
[१२५ ४-१४ अध्ययन काश्यप आदि गाथापति
१५-तेणं कालेणं तेणं समएणं रायगिहे नयरे, गुणसिलए चेइए। सेणिए राया, कासवे नाम गाहावई परिवसइ। जहा मकाई। सोलस वासा परियाओ। विपुले सिद्धे।
एवं-खेमए वि गाहावई, नवरं-कायंदी नयरी। सोलस वासा परियाओ। विपुले पव्वए
सिद्धे।
एवं-धिइहरे वि गाहावई, कायंदीए नयरीए। सोलस वासा परियाओ। विपुले सिद्धे। एवं-केलासे वि गाहावई, नवरं-साएए नगरे। बारस वासाइं परियाओ। विपुले सिद्धे। एवं-हरिचंदणे वि गाहावई, साएए नयरे- बारस वासा परियाओ। विपुले सिद्धे। एवं-वारत्तए वि गाहावई, नवरं-रायगिहे नयरे। बारस वासा परियाओ। विपुले सिद्धे।
एवं-सुदंसणे वि गाहावई, नवरं-वाणियग्गामे नयरे। दूइपलासए चेइए। पंच वासा परियाओ। विपुले सिद्धे।
एवं-पुण्णभद्दे वि गाहावई, वाणियग्गामे नयरे। पंच वासा परियाओ। विपुले सिद्धे। एवं-सुमणभद्दे वि गाहावई, सावत्थीए णयरीए। बहुवासाइं परियाओ। विपुले सिद्धे। एवं-सुपइटे वि गाहावई, सावत्थीए णयरीए। सत्तवीसं वासा परियाओ। विपुले सिद्धे। एवं-मेहे वि गाहावई, रायगिहे नयरे। बहूई वासाइं परियाओ। विपुले सिद्धे।
उस काल उस समय राजगृह नगर में गुणशील नामक उद्यान था। वहां श्रेणिक राजा राज्य करता था। वहां काश्यप नाम का एक गाथापति रहता था। उसने मकाई की तरह सोलह वर्ष तक दीक्षापर्याय का पालन किया और अन्त समय में विपुलगिरि पर्वत पर जाकर संथारा आदि करके सिद्ध बुद्ध और मुक्त हो गया।
इसी प्रकार क्षेमक गाथापति का वर्णन समझें । विशेष इतना है कि काकंदी नगरी के वे निवासी थे और सोलह वर्ष का उनका दीक्षाकाल रहा, यावत् वे भी विपुलगिर पर सिद्ध हुए।
ऐसे ही धृतिधर गाथापति का भी वर्णन समझें। वे काकंदी के निवासी थे। सोलह वर्ष तक मुनिचारित्र पालकर वे भी विपुलगिरि पर सिद्ध हुए।
इसी प्रकार कैलाश गाथापति भी थे। विशेष यह कि ये साकेत नगर के रहने वाले थे, इन्होंने बारह वर्ष की दीक्षापर्याय पाली और विपुलगिरि पर्वत पर सिद्ध हुए।
ऐसे ही आठवें हरिचन्दन गाथापति भी थे। वे भी साकेत नगर के निवासी थे। उन्होंने भी बारह वर्ष तक श्रमणचारित्र का पालन किया और अन्त में विपुलगिरि पर सिद्ध हुए।
इसी तरह नवमें वारत्त गाथापति राजगृह नगर के रहने वाले थे। बारह वर्ष का चारित्र पालन कर वे विपुलगिरि पर सिद्ध हुए।