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पंचम वर्ग ]
आदान- भाण्ड - मात्र - निक्षेपणा समिति, उच्चार-प्रस्रवण - खेल - जल्ल-सिंघाण-परिष्ठापनिकासमिति, मन:समिति, वचनसमिति, कायसमिति इन आठ समितियों और मनोगुप्ति, वचनगुप्ति और काय गुप्ति से सम्पन्न, इन्द्रियों का गोपन करने वाली गुप्तेन्द्रिया - कछुए की भान्ति इन्द्रियों को वश में करने वाली ] ब्रह्मचारिणी आर्या हो गई।
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तदनन्तर उस पद्मावती आर्या ने यक्षिणी आर्या से सामायिक से लेकर ग्यारह अंगों का अध्ययन किया, बहुत से उपवास - - बेले-तेले-चोले- पचोले- मास और अर्धमास - खमण आदि विविध तपस्या से आत्मा को भावित करती हुई विचरने लगी ।
इस तरह पद्मावती आर्या ने पूरे बीस वर्ष तक चारित्रधर्म का पालन किया और अन्त में एक मास की संलेखना से आत्मा को भावित कर, साठ भक्त अनशन पूर्ण कर, जिस अर्थ - प्रयोजन के लिये नग्नभाव, [मुण्डभाव, केशलोच, ब्रह्मचर्यवास, अस्नानक, अछत्रक, अनुपाहनक, भूमिशय्या, फलकशय्या, परगृहप्रवेश, लाभालाभ, मानापमान, हीलना, अवहेलना, निन्दा, खिंसना, ताड़ना, गर्हा, विविध प्रकार के ऊंचे-नीचे २२ परीषह तथा उपसर्ग सहन किये जाते हैं, उस अर्थ का आराधन कर अन्तिम श्वास से सिद्ध-बुद्ध-मुक्त हो गई ।
२-८ अध्ययन गौरी आदि
९ - तेणं कालेणं तेणं समएणं बारवई नयरी । रेवयए पव्वए । उज्जाणे नंदणवणे । तत्थ णं बारवईए नयरीए कण्हे वासुदेवे । तस्स णं कण्हस्स वासुदेवस्स गोरी देवी, वण्णओ। अरहा समोसढे । कण्हे णिग्गए । गोरी जहा पउमावई तहा निग्गया । धम्मकहा। परिसा पडिगया । कण्हे वि । तए णं सा गोरी जहा पउमावई तहा निक्खंता जाव' सिद्धा ।
एवं गंधारी, लक्खणा, सुसीमा, जम्बवई, सच्चभामा, रुप्पिणी, अट्ठवि पउमावईसरिसयाओ, अट्ठ अज्झयणा ।
उस काल और उस समय में द्वारका नगरी थी। उसके समीप रैवतक नाम का पर्वत था । उस पर्वत पर नन्दनवन नामक उद्यान था । द्वारका नगरी में श्रीकृष्ण वासुदेव राज्य करते थे । उन कृष्ण वासुदेव की गौरी नाम की महारानी थी, औपपातिक सूत्र के अनुसार रानी का वर्णन जान लेना चाहिए। एक समय उस नन्दनवन उद्यान में भगवान् अरिष्टनेमि पधारे। कृष्ण वासुदेवं भगवान् के दर्शन करने के लिए गये। जनपरिषद् भी गई। परिषद् लौट गई। कृष्ण वासुदेव भी अपने राज-भवन में लौट गये । तत्पश्चात् गौरी देवी पद्मावती रानी की तरह दीक्षित हुई यावत् सिद्ध हो गई ।
इसी तरह (३) गांधारी, (४) लक्ष्मणा, (५) सुसीमा, (६) जाम्बवती, (७) सत्यभामा और (८) रुक्मिणी के भी छह अध्ययन पद्मावती के समान ही समझना चाहिए ।
१. वर्ग ५, सूत्र ५, ६.