Book Title: Agam 08 Ang 08 Anantkrut Dashang Sutra Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni, Divyaprabhashreeji, Devendramuni, Ratanmuni, Kanhaiyalal Maharaj
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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षष्ठ वर्ग]
[११७
तं पलसहस्सणिप्फण्णं अओमयं मोग्गरं गहाय जामेव दिसं पाउब्भूए तामेव दिसं पडिगए ।
तणं से अज्जुणए मालागारे मोग्गरपाणिणा जक्खेणं विप्पमुक्के समाणे 'धस' त्ति धरणियलंसि सव्वंगेहिं निवडिए । तए णं से सुदंसणे समणोवासए 'निरुवसग्ग' मित्ति कट्टु पडिमं पारेइ ।
मुद्गरपाणि यक्ष सुदर्शन श्रावक के चारों ओर घूमता रहा और जब उसको अपने तेज से पराजित नहीं कर सका तब सुदर्शन श्रमणोपासक के सामने आकर खड़ा हो गया और अनिमेष दृष्टि से बहुत देर तक उसे देखता रहा । इसके बाद उस मुद्गरपाणि यक्ष ने अर्जुन माली के शरीर को त्याग दिया और उस उसी दिशा में चला गया। हजार पल भार वाले लोहमय मुद्गर को लेकर जिस दिशा से आया था,
मुद्गरपाणि यक्ष से मुक्त होते ही अर्जुन मालाकार 'धस्' इस प्रकार के शब्द के साथ भूमि पर गिर पड़ा । तब सुदर्शन श्रमणोपासक ने अपने को उपसर्ग रहित हुआ जानकर अपनी प्रतिज्ञा का पारण किया और अपना ध्यान खोला।
विवेचन - प्रस्तुत सूत्र में यह दर्शाया गया है कि सेठ सुदर्शन को देखकर अर्जुन माली ने अपना मुद्गर उछाला तो सही पर वह आकाश में अधर ही रह गया। सुदर्शन की आत्म-शक्ति की तेजस्विता के कारण वह किसी भी प्रकार से प्रत्याघात नहीं कर पाया। सूत्रकार ने इस हेतु – “तेयसा समभिपडित्तए" पद का प्रयोग किया है। मुद्गरपाणि यक्ष ने सुदर्शन पर आक्रमण किया, परंतु उनकी आध्यात्मिक तेजस्विता के कारण आघात नहीं कर पाया। वह स्वयं तेजोविहीन हो गया ।
सुदर्शन के असाधारण तेज से पराभूत मुद्गरपाणि यक्ष अर्जुन माली के शरीर में से भाग गया और अर्जुन माली भूमि पर गिर पड़ा। तब सुदर्शन ने "संकट टल गया" यह समझ कर अपना व्रत समाप्त कर दिया।
सुदर्शन और अर्जुन की भगवत्पर्युपासना
१२ - तए णं से अज्जुणए मालागारे तत्तो मुहुत्तंतरेणं आसत्थे समाणे उट्ठेइ, उट्ठेत्ता सुदंसणं समणोवासयं एवं वयासी -
"तुब्भे णं देवाणुप्पिया ! के कहिं वा संपत्थिया?"
तणं से सुदंसणे समणोवासए अज्जुणयं मालागारं एवं वयासी
“एवं खलु देवाणुप्पिया! अहं सुदंसणे नामं समणोवासए - अभिगयजीवाजीवे गुणसिलए चेइए समणं भगवं महावीरं वंदए संपत्थिए । "
तणं से अज्जु मालागारे सुदंसणं समणोवासयं एवं वयासी
"तं इच्छामि णं देवाणुप्पिया! अहमवि तुमए सद्धिं समणं भगवं महावीरं वंदित्तए जाव [नमंसित्तए सक्कारित्तए सम्माणित्तए कल्लाणं मंगलं देवयं चेइयं ] पज्जुवासित्तए । "
अहासुहं देवाणुप्पिया! मा पडिबंधं करेहि ।
तणं सुदंसणे समणोवासए अज्जुणएणं मालागारेणं सद्धिं जेणेव गुणसिलए चेइए, जेणेव समणे भगवं महावीरे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता अज्जुणएणं मालागारेणं सद्धिं समणं भगवं महावीरं तिक्खुत्तो जाव [ आयाहिणं पयाहिणं करेत्ता वंदइ, नमंसइ, वंदित्ता नमंसित्ता
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