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[ अन्तकृद्दशा
के यक्षायतन के भीतर प्रविष्ट होने की श्वास रोककर प्रतीक्षा करने लगे। इधर अर्जुन माली अपनी बन्धुमती भार्या के साथ यक्षायतन में प्रविष्ट हुआ और यक्ष पर दृष्टि पड़ते ही उसे प्रणाम किया। फिर चुने हुए उत्तमोत्तम फूल उस पर चढ़ाकर दोनों घुटने भूमि पर टेककर प्रणाम किया। उसी समय शीघ्रता से उन छह गोष्ठिक पुरुषों ने किवाड़ों के पीछे से निकल कर अर्जुन माली को पकड़ लिया और उसकी औंधी मुश्कें बांधकर उसे एक ओर पटक दिया। फिर उसकी पत्नी बन्धुमती मालिन के साथ विविध प्रकार से कामक्रीडा करने लगे ।
विवेचन - प्रस्तुत सूत्र में बताया है कि उन गोष्ठिक पुरुषों ने अर्जुन माली को अवकोटक बन्धन बांधा, जिसका अर्थ होता है – गले में रस्सी डालकर उसे पीछे मोड़ना तथा दोनों भुजाओं को पीठ के पीछे ले जाकर बाँधना । जनसाधारण की भाषा में इसे मुश्कें बांधना कहते हैं ।
निच्चला..... पच्छण्णा का अर्थ इस प्रकार है -निच्चला - निश्चल - शरीर के व्यापार से रहित । निप्फंदा-निष्पंद-कम्पन से भी रहित । तुसिणीया - तूष्णीक - मौन । पच्छण्णा-प्रच्छन्न- छिपे हुए। अर्जुन का प्रतिशोध
५ - तए णं तस्स अज्जुणयस्स मालागारस्स अयमज्झत्थिए चिंतिए पत्थिए मणोगए संकप्पे समुज्जित्था एवं खलु अहं बालप्पभिई चेव मोग्गरपाणिस्स भगवओ कल्लाकल्लि जाव' पुप्फच्चणं करेमि, जण्णुपायपडिए पणामं करेमि तओ पच्छा रायमग्गंसि वित्तिं कप्पेमाणे विहरामि । तं जइ मोग्गरपाणी जक्खे इह सण्णिहिए होंते, से णं किं मम एयारूवं आवई पावेज्जमाणं पासंते? तं नत्थि णं मोग्गरपाणी जक्खे इह सण्णिहिए । सुव्वत्तं णं एस कट्ठे । तए णं से मोग्गरपाणी जक्खे अज्जुणयस्स मालागारस्स अयमेयारूवं अज्झत्थियं जाव वियाणेत्ता अज्जुणयस्स मालागारस्स सरीरयं अणुप्पविसइ, अणुप्पविसित्ता तडतडस्स बंधाई छिंदइ, छिंदित्ता तं पलसहस्सणिप्फण्णं अओमयं मोग्गरं गेण्हइ, गेण्हित्ता ते इत्थिसत्तमे छ पुरिसे घाएइ ।
तसे अज्जुण मालागारे मोग्गरपाणिणा जक्खेणं अण्णाइट्ठे समाणे रायगिहस्स नयरस्स परिपेरंतेणं कल्लाकल्लि इत्थिसत्तमे छ पुरिसे घाएमाणे घाएमाणे विहरइ ।
यह देखकर अर्जुन माली के मन में यह विचार आया- -मैं अपने बचपन से ही भगवान् मुद्गरपाण को अपना इष्टदेव मानकर इसकी प्रतिदिन भक्तिपूर्वक पूजा करता आ रहा हूं। इसकी पूजा करने के बाद ही इन फूलों को बेचकर अपना जीवन-निर्वाह करता हूँ। तो यदि मुद्गरपाणि यक्ष देव यहां वास्तव में ही होता तो क्या मुझे इस प्रकार विपत्ति में पड़ा देखता रहता ? अतः निश्चय होता है कि वास्तव में यहाँ मुद्गरपाणि यक्ष नहीं है । यह तो मात्र काष्ठ का पुतला है। तब मुद्गरपाणि यक्ष ने अर्जुनमाली के इस प्रकार के मनोगत भावों को जानकर उसके शरीर में प्रवेश किया और उसके बन्धनों को तड़ातड़ तोड़ डाला । तब उस मुद्गरपाणि यक्ष से आविष्ट अर्जुन माली ने लोहमय मुद्गर को हाथ में लेकर अपनी बन्धुमती भार्या सहित उन छहों गोष्ठिक पुरुषों को उस मुद्गर के प्रहार से मार डाला।
इस प्रकार इन सातों का घात करके मुद्गरपाणि यक्ष से आविष्ट ( वशीभूत) वह अर्जुन माली राजगृह नगर की बाहरी सीमा के आसपास चारों ओर छह पुरुषों और एक स्त्री, इस प्रकार सात मनुष्यों की प्रतिदिन हत्या करते हुए घूमने लगा ।
वर्ग ६. सूत्र २.
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