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[अन्तकृद्दशा उस पुष्पाराम अर्थात् फूलवाडी के समीप ही मुद्गरपाणि नामक यक्ष का यक्षायतन था, जो उस अर्जुन माली के पुरखाओं-बाप-दादों से चली आई कुलपरंपरा से सम्बन्धित था। वह पूर्णभद्र' चैत्य के समान पुराना, दिव्य एवं सत्य प्रभाव वाला था। उसमें 'मुद्गरपाणि' नामक यक्ष की एक प्रतिमा थी, जिसके हाथ में एक हजार पल-परिमाण (वर्तमान तोल के अनुसार लगभग ६२ ॥ सेर तद्नुसार लगभग ५७ किलो) भारवाला लोहे का एक मुद्गर था।
वह अर्जुन माली बचपन से ही मुद्गरपाणि यक्ष का उपासक था। प्रतिदिन बांस की छबड़ी लेकर वह राजगृह नगर के बाहर स्थित अपनी उस फूलवाडी में जाता था और फूलों को चुन-चुन कर एकत्रित करता था। फिर उन फूलों में से उत्तम-उत्तम फूलों को छांटकर उन्हें उस मुद्गरपाणि यक्ष के समक्ष चढ़ाता था। इस प्रकार वह उत्तमोत्तम फूलों से उस यक्ष की पूजा-अर्चना करता और भूमि पर दोनों घुटने टेककर उसे प्रणाम करता। इसके बाद राजमार्ग के किनारे बाजार में बैठकर उन फूलों को बेचकर अपनी आजीविका उपार्जन किया करता था।
विवेचन- इस सूत्र से छठे वर्ग के तृतीय अध्ययन का कथानक प्रारंभ होता है। इस अध्ययन का नाम है "मोग्गरपाणी।" वस्तुतः इस अध्ययन का पात्र है अर्जुन माली। मुद्गरपाणि एक यक्ष है जो अपने सेवक अर्जुन माली के जीवन में एक बहुत बड़ा तूफान लाता है । परन्तु उसी नगर के निवासी सुदर्शन नाम के एक श्रावक के सम्पर्क में तूफान शांत होता है। इस अध्याय में वर्णित यक्ष का नाम मुद्गरपाणि इस कारण है कि उसके पाणि अर्थात् हाथ में मुद्गर नाम का एक अस्त्र विशेष था। इसी कारण वह इस नाम से प्रसिद्ध था।
___ मुद्गरपाणि का वर्णन करते हुए सूत्रकार कहते हैं - "पलसहस्सणिप्फण्णं"- अर्थात् जिसका निर्माण हजार पलों से किया गया है। पल शब्द का अर्थ इस प्रकार है- दो कर्ष प्रमाण (कर्ष १०. मासे का होता है)। कोभ्यां पलं प्रोक्तं, कर्षः स्याद्दशमाषक:। (शाङ्गधर संहिता) । इस प्रकार २० मासे का एक पल होता है। अन्य कोषों में लिखा है-पल अर्थात एक बहत छोटी तोल.चार तोला (प्राकतशब्दमहार्णवपाइयसद्दमहण्णवो)। एक तोल (मान विशेष-अर्द्धमागधी कोष) अस्तु चार तोले का यदि एक पल माना जाय तो यक्ष के हाथ में १ मन १० सेर का विशाल मुद्गर था। अन्य प्रकार से इसकी व्याख्या यों हैआज कल के पांच रुपयों के भार बराबर एक पल होता है, १६ पलों का एक सेर होता है, इस तरह १००० पल के साढे बासठ (६२॥) सेर होते हैं। इन से बने हुए को 'पलसहस्र-निष्पन्न' कहते हैं।
___ 'पच्छिपिडगाई' इस पद में पच्छि' और 'पिटक' ये दो शब्द हैं । पच्छी देशीय भाषा का शब्द है जो छोटी टोकरी के लिये प्रयुक्त होता है। पिटक शब्द भी पिटारी का बोधक है। दो समानार्थक पदों का प्रयोग अनेकविध पिटारियों अर्थात् टोकरियों का बोधक है। भाव यह है कि अर्जुन माली अनेक प्रकार की टोकरियाँ लेकर पुष्पवाटिका में जाया करता था। गोष्ठिक पुरुषों का अनाचार
३-तत्थ णं रायगिहे नयरे ललिया नामं गोट्ठी परिवसइ-अड्डा जाव अपरिभूया जंकयसुकया यावि होत्था।
तए णं रायगिहे नयरे अण्णया कयाइ पमोदे घुढे यावि होत्था। तए णं से अज्जुणए मालागारे कल्लं पभूयतराएहिं पुप्फेहिं कज्जं इति कटु पच्चूसकालसमयंसि बंधुमईए भारियाए