Book Title: Agam 08 Ang 08 Anantkrut Dashang Sutra Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni, Divyaprabhashreeji, Devendramuni, Ratanmuni, Kanhaiyalal Maharaj
Publisher: Agam Prakashan Samiti

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Page 152
________________ षष्ठ वर्ग] [१११ राजगृह नगर में आतंक ६-तए णं रायगिहे नयरे सिंघाडग जाव [तिग-चउक्क-चच्चर-चउम्मुह ] महापहपहेसु बहुजणो अण्णमण्णस्स एवमाइक्खइ एवं भासेइ एवं पण्णवेइ एवं परूवेइ __ "एवं खलु देवाणुप्पिया! अज्जुणए मालागारे मोग्गरपाणिणा अण्णाइढे समाणे रायगिहे नयरे बहिया इत्थिसत्तमें छ पुरिसे घाएमाणे-घाएमाणे विहरइ।' तए णं से सेणिए राया इमीसे कहाए लद्धढे समाणे कोडुंबियपुरिसे सद्दावेइ, सद्दावेत्ता एवं वयासी ___ "एवं खलु देवाणुप्पिया! अज्जुणए मालागारे जाव' घाएमाणे घाएमाणे विहरइ। तं मा णं तुब्भे केइ कट्ठस्स वा तणस्स वा पाणियस्स वा पुण्फफलाणं वा अट्ठाए सइरं निग्गच्छह। मा णं तस्स सरीरयस्स वावत्ती भविस्सइ त्ति कटु दोच्चं पि तच्चं पि घोसणयं घोसेह, घोसेत्ता खिप्पामेव ममेयं पच्चप्पिणह। तए णं से कोडुंबियपुरिसा जाव पच्चप्पिणंति।" उस समय राजगृह नगर के शृंगाटक, त्रिक, चतुष्क, चत्वर, चतुर्मुख, राजमार्ग आदि सभी स्थानों में बहुत से लोग परस्पर इस प्रकार बोलने लगे "देवानुप्रियो ! अर्जुन माली, मुद्गरपाणि यक्ष के वशीभूत होकर राजगृह नगर के बाहर एक स्त्री और छह पुरुष, इस प्रकार सात व्यक्तियों को प्रतिदिन मार रहा है।" उस समय जब श्रेणिक राजा ने यह बात सुनी तो उन्होंने अपने सेवक पुरुषों को बुलाया और उनको इस प्रकार कहा 'हे देवानुप्रियो ! राजगृह नगर के बाहर अर्जुन माली यावत् छह पुरुषों और एक स्त्री-इस प्रकार सात व्यक्तियों का प्रतिदिन घात करता हुआ घूम रहा है। अतः तुम सारे नगर में मेरी आज्ञा को इस प्रकार प्रसारित करो कि कोई भी घास के लिये, काष्ठ, पानी अथवा फल-फूल आदि के लिये राजगृह नगर के बाहर न निकले। ऐसा न हो कि उनके शरीर का विनाश हो जाय। हे देवानुप्रियो! इस प्रकार दो तीन बार घोषणा करके मुझे सूचित करो।' यह राजाज्ञा पाकर राजसेवकों ने राजगृह नगर में घूम घूम कर राजाज्ञा की घोषणा की और घोषणा करके राजा को सूचित कर दिया। श्रावक सुदर्शन श्रेष्ठी ७-तत्थ णं रायगिहे नयरे सुदंसणे नामं सेट्ठी परिवइ-अड्डे० । तए णं से सुदंसणे समणोवासए यावि होत्था-अभिगयजीवाजीवे जाव [उवलद्धपुण्णपावे, आसव-संवर-निज्जर - किरियाहिगरणबंध-मोक्खकुसले, असहेज्जदेवा-सुर-नाग-सुवण्ण-जक्ख-रक्खस-किन्नरकिंपुरिस-गरुल-गंधव्व-महोरगाइएहिं देवगणेहिं णिग्गंथाओ पावयणाओ अणइक्कमणिज्जे, णिग्गंथे पावयणे निस्संकिए निक्कंखिए निव्वितिगिच्छे, लद्धटे, गहियढे, पुच्छियढे, अहिगयढे, विणिच्छियढे, अट्ठिमिंजपेमाणुरागरत्ते। अयमाउसो! निग्गंथे पावयणे अढे, अयं परमढे, सेसे अणढे, उसियफलिहे अवंगुयदुवारे, चियत्तंतेउरपरघरदारप्पवेसे, बहूहिं सीलव्वय-गुण-वेरमणपच्चक्खाण-पोसहोपवासेहिं चाउद्दस्सट्ठमुद्दिट्ठ-पुण्णमासिणीसु पडिपुण्णं पोसहं सम्मं अणुपालेमाणे समणे निग्गंथे फासुएसणिज्जेणं असण-पाण-खाइम-साइमेणं वत्थ-पडिग्गह-कंबल-पायपुंछणेणं पीढ-फलग-सिज्जा-संथारएणं ओसह-भेसज्जेण य पडिलाभेमाणे अहापरिग्गहिएहिं तवोकम्मेहिं अप्पाणं भावेमाणे ] विहरइ। १-२. देखिए ऊपर प्रस्तुत सूत्र ।

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