________________
१०४]
[अन्तकृद्दशा ९-१० अध्ययन
मूलश्री-मूलदत्ता १०-तेणं कालेणं तेणं समएणं बारवईए नयरीए रेवयए पव्वए, नंदणवणे उज्जाणे, कण्हे वासुदेवे। तत्थ णं बारवईए नयरीए कण्हस्स वासुदेवस्स पुत्ते जंबवईए देवीए अत्तए संबे नामं कुमारे होत्था-अहीणपडिपुण्णपंचिंदियसरीरे। तस्स णं संबस्स कुमारस्स मूलसिरी नामं भज्जा वि निग्गया, जहा पउमावई। जं नवरं-देवाणुप्पिया! कण्हं वासुदेवं आपुच्छामि जाव' सिद्धा।
एवं मूलदत्ता वि।
उस काल उस समय में द्वारका नगरी के पास रैवतक नाम का पर्वत था, वहां नन्दनवन उद्यान था। वहां कृष्ण-वासुदेव राज्य करते थे। कृष्ण वासुदेव के पुत्र और रानी जाम्बवती देवी के आत्मज शाम्ब नाम के कुमार थे, जो सर्वांग सुन्दर थे। उन शाम्ब कुमार की मूलश्री नाम की भार्या थी। अत्यन्त सुन्दर एवं कोमलांगी थी। एक समय अरिष्टनेमि वहां पधारे। कृष्ण वासुदेव उनके दर्शनार्थ गये। मूलश्री देवी भी पद्मावती के समान प्रभु के दर्शनार्थ गई। विशेष में बोली- हे देवानुप्रिय! कृष्ण वासुदेव से पूछती हूँ (पूछकर दीक्षित हुई) यावत् सिद्ध हो गई।
____ मूलश्री के समान मूलदत्ता का भी सारा वृत्तान्त जानना चाहिये। (यह शाम्ब कुमार की दूसरी रानी थी)।
१. वर्ग ५, सूत्र ४-६