Book Title: Agam 08 Ang 08 Anantkrut Dashang Sutra Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni, Divyaprabhashreeji, Devendramuni, Ratanmuni, Kanhaiyalal Maharaj
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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५६]
सोमिलकन्या का अन्तःपुर में प्रवेश
[ अन्तकृद्दशा
१८ - तेणं कालेणं तेण समएणं अरहा अरिट्ठनेमी समोसढे । परिसा निग्गया ।
तणं से कहे वासुदेवे इमीसे कहाए लद्धट्ठे समाणे ण्हाए जाव विभूसिए गयसुकुमालेणं कुमारेणं सद्धिं हत्थिखंधवरगए सकोरंटमल्लदामेणं छत्तेणं धरिज्जमाणेणं सेयवरचामराहिं उद्धुव्वमाणीहिं बारवईए नयरीए मज्झंमज्झेणं अरहओ अरिट्टणेमिस्स पायवंदए निग्गच्छमाणे सोमं दारियं पासइ, पासित्ता सोमाए दारियाए रूवेण य जोव्वणेण य लावण्णेण य जायविम्हए कोडुंबियपुरिसे सद्दावेइ, सद्दावित्ता एवं वयासी - " गच्छह णं तुब्भे देवाणुप्पिया! सोमिलं माहणं जायित्ता सोमं दारियं गेण्हह, गेण्हित्ता कण्णंतेउरंसि पक्खिवह । तए णं एसा गयसुकुमालस्स कुमारस्स भारिया भविस्सइ । तए णं कोडुंबिय जाव [ पुरिसा सोमं दारियं गेण्हित्ता कण्णंतेउरंसि ] पक्खिवंति ।
उस काल और उस समय में अरिहंत अरिष्टनेमि द्वारका नगरी में पधारे। परिषद् धर्म-कथा सुनने को आई ।
उस समय कृष्ण वासुदेव भी भगवान् के शुभागमन के समाचार से अवगत हो, स्नान कर, यावत् वस्त्रालंकारों से विभूषित हो गजसुकुमाल कुमार के साथ हाथी के होदे पर आरूढ़ होकर कोरंट पुष्पों की माला सहित छत्र धारण किये हुए, श्वेत एवं श्रेष्ठ चामरों से दोनों ओर से निरन्तर वीज्यमान होते हुए, द्वारका नगरी के मध्य भाग से होकर अर्हत् अरिष्टनेमि के चरण-वन्दन के लिये जाते हुए, राज-मार्ग में खेलती हुई उस सोमा कन्या को देखते हैं। सोमा कन्या के रूप, लावण्य और कान्ति-युक्त यौवन को देखकर कृष्ण वासुदेव अत्यन्त आश्चर्य चकित हुए । तब वह कृष्ण वासुदेव आज्ञाकारी पुरुषों को बुलाते हैं । बुलाकर इस प्रकार कहते हैं
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"हे देवानुप्रियो ! तुम सोमिल ब्राह्मण के पास जाओ और उससे इस सोमा कन्या की याचना करो, उसे प्राप्त करो और फिर उसे लेकर कन्याओं के अन्तःपुर में पहुँचा दो। यह सोमा कन्या, मेरे छोटे भाई गजसुकुमाल की भार्या होगी।" तब आज्ञाकारी पुरुषों ने यावत् वैसा ही किया ।
विवेचन –‘कण्णंतेउरंसि' – इस पद में कन्या और अन्तःपुर ये दो शब्द हैं। कन्या, कुमार या अविवाहिता लड़की का नाम है । अन्तःपुर - स्त्रियों के राजकीय आवास भवन को कहते हैं। दोनों शब्दों को मिलाने पर अर्थ होता है - वह राजमहल जिसमें अविवाहित लड़कियाँ रहती हैं। प्रस्तुत सूत्र में 'कण्णंतेउरंसि' शब्द के प्रयोग से यह प्रतीत होता है कि उस समय गजसुकुमाल के विवाहार्थ अनेक कुमारियां एकत्रित की गई थीं।
भगवान् अरिष्टनेमि की उपासना
१९ - तए णं से कण्हे वासुदेवे बारवईए नयरीए मज्झंमज्झेणं निग्गच्छइ, निग्गच्छित्ता जेणेव सहसंबवणे उज्जाणे जाव [ जेणेव अरहा अरिट्ठनेमी तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता अरहओ अरिट्टणेमिस्स छत्तातिछत्तं पडागातिपडागं विज्जाहरचारणे जंभए य देवे ओवयमाणे उप्पयमाणे पासइ, पासित्ता अरहं अरिट्ठनेमिं पंचविहेणं अभिगमेणं अभिगच्छइ । तं जहा – (१) सचित्ताणं दव्वाणं विउसरणायाए (२) अचित्ताणं दव्वाणं अविउसरणयाए (३) एगसाडियं उत्तरासंगकरणेणं (४) चक्खुप्फासे अंजलिपग्गहेणं (५) मणसो एगत्तीकरणेणं । जेणामेव
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