Book Title: Agam 08 Ang 08 Anantkrut Dashang Sutra Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni, Divyaprabhashreeji, Devendramuni, Ratanmuni, Kanhaiyalal Maharaj
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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तृतीय वर्ग]
[५५ तालु-समान' कहलाता है। वैसे सभी प्राणियों का तालु रक्त और कोमल होता है पर हाथी का तालु विशेष रूप से रक्त और कोमल माना गया है।
गजसुकुमार के युवक हो जाने पर उसके विवाह आदि के सम्बन्ध में क्या हुआ? इस जिज्ञासा के सम्बन्ध में सूत्रकार कहते हैंसोमिल ब्राह्मण
१६-तत्थ णं बारवईए नयरीए सोमिले नाम माहणे परिवसइ-अड्ढे। रिउव्वेय जाव [जजुव्वेद-सामवेद-अहव्वणवेद-इतिहासपंचमाणं, निघंटुछट्ठाणं चउण्हं वेदाणं संगोवंगाणंसरहस्साणं सारए, वारए, धारए, पारए, सडंगवी, सट्ठितंतविसारए, संखाणे, सिक्खाकप्पे, वागरणे, छंदे, निरुत्ते, जोइसामयणे, अन्नेसु य बहूसु बम्हण्णएसु परिवायएसु नयेसु] सुपरिणिट्ठिए यावि होत्था। तस्स सोमिल-माहणस्स सोमसिरी नामं माहणी होत्था। सुकमाल। तस्स णं सोमिलस्स धूया सोमसिरीए माहणीए अत्तया सोमा नाम दारिया होत्था। सोमाला जाव' सुरूवा। रूवेण जाव (जोव्वणेणं) लावण्णेणं उक्किट्ठा उक्किट्ठसरीरा यावि होत्था। तए णं सा सोमा दारिया अण्णया कयाइ ण्हाया जावर विभूसिया, बहूहिं खुज्जाहिं जाव३ परिक्खित्ता सयाओ गिहाओ पडिणिक्खमड, पडिणिक्खमित्ता जेणेव रायमग्गे तेणेव उवागच्छड, उवागच्छित्ता रायमग्गंसि कणगतिंदूसएणं कीलमाणी चिट्ठइ।
उस द्वारका नगरी में सोमिल नामक एक ब्राह्मण रहता था, जो समृद्ध और ऋग्वेद, [यजुर्वेद, सामवेद, अथर्ववेद इन चारों वेदों, पांचवें, इतिहास, तथा छठे निघण्टु, इन सबके अंगोपांग सहित रहस्य का ज्ञाता था। वह इनका 'सारक' (स्मारक) अर्थात् इनको पढ़ाने वाला था, अत: इनका प्रवर्तक था अथवा जो कोई वेदादि को भूल जाता था उसको पुनः याद कराता था, अतः वह स्मारक था। वह वारक था अर्थात् जो कोई दूसरे लोग वेदादि का अशुद्ध उच्चारण करते थे, उनको रोकता था, इसलिये वह 'वारक' था। वह 'धारक' था अर्थात् पढ़े हुए वेदादि को नहीं भूलने वाला था अपितु उनको अच्छी तरह धारण करनेवाला था। वह वेदादि का 'पारक'- पारंगत था। छह अंगों का ज्ञाता था। षष्ठितन्त्र (कापिलीय शास्त्र) में विशारद (पंडित) था। वह गणितशास्त्र, शिक्षाशास्त्र, आचारशास्त्र, व्याकरणशास्त्र, छन्दशास्त्र, व्युत्पत्तिशास्त्र, ज्योतिषशास्त्र, इन सब शास्त्रों में तथा दूसरे बहुत से] ब्राह्मण और पारिव्राजक सम्बन्धी शास्त्रों में बड़ा निपुण था। उस सोमिल ब्राह्मण के सोमश्री नाम की ब्राह्मणी (पत्नी) थी। सोमश्री सुकुमार एवं रूपलावण्य और यौवन से सम्पन्न थी। उस सोमिल ब्राह्मण की पुत्री और सोमश्री ब्राह्मणी की आत्मजा सोमा नाम की कन्या थी, जो सुकोमल यावत् बड़ी रूपवती थी। रूप, आकृति तथा लावण्य-सौन्दर्य की दृष्टि से उसमें कोई दोष नहीं था, अतएव वह उत्तम तथा उत्तम शरीरवाली थी। वह सोमा कन्या अन्यदा किसी दिन स्नान कर यावत् वस्त्रालंकारों से विभूषित हो, बहुत सी कुब्जाओं, यावत् महत्तरिकाओं से घिरी हुई अपने घर से बाहर निकली। घर से बाहर निकल कर जहां राजमार्ग था, वहाँ आई और राजमार्ग में स्वर्ण की गेंद से खेल खेलने लगी।
२. देखिए, तृतीय वर्ग का नवमसूत्र
१. ३.
देखिए, तृतीय वर्ग का प्रथमसूत्र । देखिए, वर्ग ३, अ. १, सूत्र २।