Book Title: Agam 08 Ang 08 Anantkrut Dashang Sutra Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni, Divyaprabhashreeji, Devendramuni, Ratanmuni, Kanhaiyalal Maharaj
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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तए णं अरहा अरिट्ठनेमी कण्हं वासुदेवं एवं वयासी
" मा णं कण्हा! तुमं तस्स पुरिसस्स पदोसमावज्जाहि । एवं खलु कण्हा! तेणं पुरिसेणं गयसुकुमालस्स अणगारस्स साहिज्जे दिण्णे । "
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[ अन्तकृद्दशा
यह सुनकर कृष्ण वासुदेव भगवान् नेमिनाथ से इस प्रकार पूछने लगे
"भंते! वह अप्रार्थनीय का प्रार्थी अर्थात् मृत्यु को चाहनेवाला, [ दुरन्त प्रान्त लक्षण वाला, पुण्यहीन चतुर्दशी को उत्पन्न, लज्जा और लक्ष्मी से रहित] निर्लज्ज पुरुष कौन है जिसने मेरे सहोदर लघु भ्राता गजसुकुमाल मुनि का असमय में ही प्राण हरण कर लिया?"
तब अर्हत् अरिष्टनेमि कृष्ण वासुदेव से इस प्रकार बोले
" हे कृष्ण ! तुम उस पुरुष पर द्वेष- रोष मत करो, क्योंकि उस पुरुष ने सुनिश्चित रूपेण गजसुकुमाल मुनि को अपना आत्म - कार्य - - अपना प्रयोजन सिद्ध करने में सहायता प्रदान की है।"
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विवेचन - " अकाले चेव जीवियाओ ववरोवेइ" यहां 'ववरोविए' पाठ अधिक उपयुक्त प्रतीत होता है । अस्तु, इन पदों का अर्थ है- अकाल में ही जीवन से रहित कर दिया। अकाल मृत्यु शब्द असमय की मृत्यु के लिये प्रयुक्त होता है। जो मृत्यु समय पर हो, व्यावहारिक दृष्टि में अपना समय पूर्ण कर लेने पर हो, उसे अकाल मृत्यु नहीं कहते, वह कालमृत्यु है।
जैन शास्त्रों में आयु के दो प्रकार हैं - एक अपवर्तनीय और दूसरी अनपवर्तनीय। जो आयु बन्धकालीन स्थिति के पूर्ण होने से पहले ही विष, शस्त्र आदि का निमित्त मिलने पर शीघ्र भोगी जा सके वह अपवर्तनीय आयु है, और जो बन्धकालीन स्थिति के पूर्ण होने से पहले न भोगी जा सके वह अनपवर्तनीय आयु है । इस आयुद्वय का बन्ध स्वाभाविक नहीं है, परिणामों के तारतम्य पर आधारित है । आयु बांधते समय अगर परिणाम मंद हो तो आयु का बंध शिथिल पड़ेगा, अगर परिणाम तीव्र हों तो बंध तीव्र होगा। शिथिल बंधवाली आयु निमित्त मिलने पर घट जाती है - नियत काल से पहले ही भोग ली जाती है और तीव्र बंधवाली (निकाचित) आयु निमित्त मिलने पर भी नहीं घटती है । स्थानांगसूत्र में आयुभेद के सात निमित्त बताये हैं, जो इस प्रकार हैं
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१. अज्झवसाण - अध्यवसान- -स्नेह या भय रूप प्रबल मानसिक आघात होने पर आयु समय से पहले ही समाप्त होती है ।
२. निमित्त – शस्त्र, दण्ड, अग्नि आदि का निमित्त पाकर आयु शीघ्र समाप्त हो जाती है ।
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३. आहार - अधिक भोजन करने से आयु घट जाती है।
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४. वेदना – किसी भी अंग में असह्य वेदना होने पर आयु के दलिक समय से पूर्व ही उदय में आकर आत्मा से झड़
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५. पराघात - गड्ढे में गिरना, छत का ऊपर गिर जाना आदि बाह्य आघात पाकर आयु की उदीरणा हो जाती है ।
६. स्पर्श - सर्प आदि जहरीले जीवों के काटने पर अथवा ऐसी वस्तु का स्पर्श होने पर जिससे