Book Title: Agam 08 Ang 08 Anantkrut Dashang Sutra Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni, Divyaprabhashreeji, Devendramuni, Ratanmuni, Kanhaiyalal Maharaj
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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[अन्तकृद्दशा ही आराधन किया। पूर्ण रूप से स्कन्धक की तरह ही चिंतन किया, भगवान् से पूछा तथा स्थविर मुनियों के साथ वैसे ही शत्रुजय पर्वत पर चढ़े । १२ वर्ष की दीक्षा पर्याय पूर्ण कर एक मास की संलेखना द्वारा यावत् [आत्मा को आराधित किया। अनशन द्वारा साठ भोजनों का परित्याग कर, जिस अर्थ-प्रयोजन के लिये नग्नभाव-साधुवृत्ति, मुण्डभाव-द्रव्य से सिर को मुंडित करना, भाव से परिग्रह का त्याग करना, केश लोच अर्थात् बालों को हाथों से उखाड़ना, ब्रह्मचर्यवास, अस्नानक-स्नान न करना, अछत्रक-छत्र का प्रयोग न करना, उपानह-जूते का उपयोग न करना, भूमिशय्या-भूमि पर शयन करना, फलकशय्यातख्त पर शयन करना, परघरप्रवेश-दूसरों के घरों में भिक्षार्थ प्रवेश करना, लाभालाभ-किसी समय वस्तु का प्राप्त होना, किसी समय न होना, मानापमान-कहीं मान कहीं अपमान होना, दूसरों द्वारा की गई हीलना-अवहेलना, निंदा, खिंसना-लोगों के सामने जाति आदि का गुप्त रहस्य प्रकट करना, ताडनामारना, गर्दा, निंदा, ऊँच-नीच नाना प्रकार के २२ परीषह इन्द्रियों के दुःखदायक उपसर्ग सहन करना आदि किया जाता है, अन्त में उस प्रयोजन को सिद्ध कर लिया और अन्तिम श्वासों द्वारा] सिद्ध, बुद्ध, मुक्त, सकल कर्मजन्य सन्तापों से रहित एवं सब प्रकार के दुःखों से विमुक्त हो गए। सुधर्मा स्वामी ने अपने शिष्य जंबू से कहा- "हे जंबू! मोक्ष को प्राप्त भगवान् महावीर ने आठवें अंतगडसूत्र के प्रथम वर्ग के प्रथम अध्ययन का यह अर्थ कहा है।
विवेचन-प्रस्तुत सूत्र में दीक्षा के अनन्तर गौतम अनगार की अध्ययनशीलता, तपोभावना, और सम्यक् आचरण से लेकर अन्तिमविधि कर सिद्ध पद की उपलब्धि तक का वर्णन प्रस्तुत किया गया है।
__'तहारूवाणं थेराणं' अर्थात् तथारूप स्थविर । तथारूप का अर्थ है- शास्त्र में वर्णन किये गये आचार का पालन करने वाले और स्थविर का अर्थ है वृद्ध साधु । स्थानांग सूत्र में इसके तीन भेद बताए हैं – (१) वयः-स्थविर-साठ वर्ष की आयु वाले, (२) सूत्र-स्थविर - स्थानांग-समवायांग आदि अंग सूत्रों के ज्ञाता, (३) प्रव्रज्या-स्थविर – २० वर्ष की दीक्षा-पर्याय वाले साधु ।
. सामायिक के ५ अर्थ प्रसिद्ध हैं - (१) सामायिक चारित्र-सर्व सावद्य योगों से निवृत्ति, (२) श्रावक का नवम व्रत, देशविरति रूप सामायिक चारित्र, (३) सामायिक श्रुत, आचारांग आदि, (४) आवश्यक सूत्र का प्रथम अध्ययन और (५) द्रव्य लेश्या से उत्पन्न होने वाला परिणाम–अध्यवसाय।
__ प्रस्तुत अर्थों में "आवश्यक सूत्र का प्रथम अध्ययन" यह अर्थ अधिक अभीष्ट है। अत: मुनि गौतम ने सामायिक आदि से लेकर ११ अंगों का अध्ययन किया। अब प्रश्न होता है कि-ग्यारह अंगों में अन्तकृद्दशांग का भी निर्देश किया गया है। इसके प्रथम वर्ग के प्रथम अध्ययन में श्री गौतमकुमार का जीवन प्रस्तुत हुआ है। तो क्या वह गौतम कुमार यही था या अन्य? यदि यही था तो उसने अन्तकृद्दशांग का अध्ययन कैसे किया? जिसका निर्माण ही बाद में हुआ है?
___ इसका समाधान इस प्रकार हो सकता है कि प्रथम अध्ययन में जिस गौतम कुमार का वर्णन किया गया है यही हमारे द्वारकाधीश महाराज अन्धकवृष्टि के सुपुत्र हैं । अब रही बात पढने की। इसका समाधान यह है कि भगवान् अरिष्टनेमि के गणधर अनुपम ज्ञानादि गुणों के धारक थे। उनकी अनेकों वाचनाएं थीं, जो कि इन्हीं पूर्वोक्त अंगों एवं उपांगों के नाम से प्रसिद्ध थीं। प्रत्येक में विषय भिन्न-भिन्न होता था और उनका अध्ययन-क्रम भी विभिन्न ही होता था। वर्तमान काल में जो वाचना उपलब्ध हो रही है, वह भगवान् महावीर के पट्टधर श्रद्धेय श्रीसुधर्मा स्वामी की है। गौतम कुमार ने जो एकादश अंग पढे थे वे तत्कालीन किसी गणधर की वाचना के ११ अंग थे। वर्तमान में उपलब्ध वाचनावाले अंगशास्त्रों का उन्होंने अध्ययन नहीं किया। यह वाचना तो उस समय में थी ही नहीं, अत: इस वाचना के पढ़ने का प्रश्न