Book Title: Agam 08 Ang 08 Anantkrut Dashang Sutra Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni, Divyaprabhashreeji, Devendramuni, Ratanmuni, Kanhaiyalal Maharaj
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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तृतीय वर्ग]
[२१ नाग नाम का गाथापति रहता था। वह अत्यन्त समृद्धिशाली यावत् धनी तेजस्वी विस्तृत और विपुल भवनों, शय्याओं, आसनों, यानों और वाहनों वाला था तथा सुवर्ण रजत आदि धन की बहुलता से युक्त था। वह अर्थलाभ के उपायों का सफलता से प्रयोग करता था। भोजन करने के अनन्तर भी उसके यहां बहुतसा अन्न बाकी बच जाता था। उसके घर में दास-दासी आदि और गाय-भैंस तथा बकरी आदि पशु थे और वह बहुतों से भी पराभव को प्राप्त नहीं होता था। उस नाग गाथापति की सुलसा नाम की भार्या थी। वह अत्यन्त सुकोमल हाथ-पैरों वाली थी। उसकी पांचों इन्द्रियाँ और शरीर खामियों से रहित और परिपूर्ण था। वह (स्वस्तिक आदि) लक्षण, (तिल मषादि) व्यंजन और गुणों से युक्त थी। माप, भार और आकार विस्तार से परिपूर्ण और समस्त सुन्दर अंगों वाला उसका शरीर था। उसकी आकृति चन्द्र के समान सौम्य और दर्शन कान्त और प्रिय था। इस प्रकार उसका रूप बहुत सुन्दर था।
विवेचन-प्रस्तुत सूत्र में इस वर्ग के अध्ययनों का और प्रथम अध्ययन में प्रतिपाद्य अनीयसकुमार के माता-पिता का वर्णन है।
२-तस्स णं नागस्स गाहावइस्स पुत्ते सुलसाए भारियाए अत्तए अणीयसे नाम कुमारे होत्था। सूमाले जाव [ अहीण-पडिपुण्ण-पंचिंदिय-सरीरे , लक्खण-वंजण-गुणोववेए माणुम्माणप्पमाण-पडिपुण्ण-सुजायसव्वंगसुंदरंगे ससिसोमागारे कंते पियदंसणे ] सुरूवे पंचधाइपरिक्खित्ते जहा दढपइण्णे जाव [ खीरधाईए मंडणधाईए मजणधाईए अंकधाईए कीलावणधाईए, बहूहिं खुज्जाहिं चिलाइयाहिं वामणियाहिं वडभियाहिं बब्बराहिं लासियाहिं लाउसियाहिं दामिलीहिं सिंहलीहिं मुरंडीहिं सबरीहिं पारसीहिं णाणादेसीविदेसपरिमंडियाहिं इंगियाचिंतियपत्थियवियाणियाहिं सदेसणेवत्थगहियवेसाहिं निउणकु सलाहिं विणीयाहिं चेडियाचक्कवालतरुणिवंद परियाल-परिवुडे वरिसधरकंचुइमहयर-वंदपरिक्खित्ते हत्थाओ हत्थं साहरिज्जमाणे अंकाओ अंकं परिभुज्जमाणे, परिगिज्जमाणे, चालिज्जमाणे, उवलालिज्जमाणे, रम्मंसि मणिकोट्टिमतलंसि परिमिज्जमाणे परिमिज्जमाणे णिव्वायणिव्वाघायंसि] गिरिकंदरमल्लीणे व चंपगपायवे सुहंसुहेणं परिवड्ढइ।
तए णं तं अणीयसं कुमारं सातिरेगअट्ठवासजायं अम्मापियरो कलायरियस्स उवणेति जाव [तए णं से कलायरिए अणीयसं कुमारं लेहाइयाओ गणितप्पहाणाओ सउणिरुतपज्जवसाणाओ बावत्तरिं कलाओ सुत्तओ अ अत्थओ अ करणओ य सेहावेइ, सिक्खावेइ।
तं जहा-(१) लेहं (२) गणियं (३) रूवं (४) नट्टे (५) गीयं (६) वाइयं (७) सरगयं (८) पोक्खरगयं (९) समतालं (१०) जूयं (११) जणवायं (१२) पासयं (१३) अट्ठावयं (१४) पोरेकच्चं (१५) दगमट्टियं (१६) अन्नविहिं (१७) पाणविहिं (१८) वत्थविहिं (१९) विलेवणविहिं (२०) सयणविहिं (२१) अज्जं (२२) पहेलियं (२३) मागहियं (२४) गाहं ( २५) गीइयं (२६) सिलोयं (२७) हिरणजुत्तिं (२८) सुवण्णजुत्तिं (२९) चुनजुत्तिं (३०) आभरणविहिं (३१) तरुणीपडिकम्मं (३२) हथिलक्खणं (३३) पुरिसलक्खणं (३४) हयलक्खणं (३५) गयलक्खणं (३६) गोणलक्खणं (३७) कुक्कुडलक्खणं (३८) छत्तलक्खणं (३९) दंडलक्खणं (४०) असिलक्खणं (४१) मणिलक्खणं (४२) कागणिलक्खणं (४३) वत्थुविजं (४४) खंधारमाणं (४५) नगरमाणं (४६) वूहं (४७)