Book Title: Agam 08 Ang 08 Anantkrut Dashang Sutra Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni, Divyaprabhashreeji, Devendramuni, Ratanmuni, Kanhaiyalal Maharaj
Publisher: Agam Prakashan Samiti
View full book text
________________
तृतीय वर्ग]
[४१ देवकी की पुत्राभिलाषा
. १३ - तए णं तीसे देवईए देवीए अयं अज्झथिए चिंतिए पत्थिए मणोगए संकप्पे समुप्पण्णे-एवं खलु अहं सरिसए जाव नलकुब्बर-समाणे सत्त पुत्ते पयाया, नो चेव णं मए एगस्स वि बालत्तणए समणुब्भूए। एस वि य णं कण्हे वासुदेवे छण्हं-छण्हं मासाणं ममं अंतियं पायवंदए हव्वमागच्छड। तं धण्णाओ णं ताओ अम्मयाओ, पण्णओ णं ताओ अम्मयाओ. कयपुण्णाओ णं ताओ अम्मयाओ, कयलक्खणाओ णं ताओ अम्मयाओ, जासिं मण्णे णियगकुच्छि -संभूयाई थणदुद्ध-लुद्धयाई महु रसमुल्लावायाई मम्मण-पँजपियाई थण-मूला कक्खदेसभागं अभिसरमाणाई मुद्धयाइं पुणो य कोमल-कमलोवमेहिं गिहिऊण उच्छंगे णिवेसियाई देंति समुल्लावए सुमहुरे पुणो-पुणो मंजुलप्पभणिए। अहं णं अधण्णा अपुण्णा अकयपुण्णा अकयलक्खणा एत्तो एक्कतरमवि ण पत्ता, ओहय जाव [मणसंकप्पा करयलपल्हत्थमुही अट्टज्झाणेवगया] झियायइ।
उस समय देवकी देवी को इस प्रकार का विचार, चिन्तन और अभिलाषापूर्ण मानसिक संकल्प उत्पन्न हुआ कि अहो ! मैंने पूर्णतः समान आकृति वाले यावत् नलकूबर के समान सात पुत्रों को जन्म दिया पर मैंने एक की भी बाल्यक्रीडा का आनन्दानुभव नहीं किया। यह कृष्ण वासुदेव भी छह-छह मास के अनन्तर चरण-वन्दन के लिये मेरे पास आता है, अतः मैं मानती हूँ कि वे माताएं धन्य हैं, जिनकी अपनी कुक्षि से उत्पन्न हुए, स्तन-पान के लोभी बालक, मधुर आलाप करते हुए, तुतलाती बोली से मन्मन बोलते हुए जिनके स्तनमूल कक्ष-भाग में अभिसरण करते हैं, एवं फिर उन मुग्ध बालकों को जो माताएं कमल के समान अपने कोमल हाथों द्वारा पकड़ कर गोद में बिठाती हैं और अपने बालकों से मधुर-मंजुल शब्दों में बार बार बातें करती हैं। मैं निश्चितरूपेण अधन्य और पुण्यहीन हूँ क्योंकि मैंने इनमें से एक पुत्र की भी बालक्रीडा नहीं देखी। इस प्रकार देवकी खिन्न मन से हथेली पर मुख रखकर (शोक-मुद्रा में) आर्तध्यान करने लगी।
विवेचन - प्रस्तुत सूत्र में सात-सात पुत्रों की माता बनने पर भी उनकी बाल्यक्रीडा आदि से वंचित देवकी देवी की खिन्न अवस्था-विशेष से उठने वाले संकल्प-विकल्पों का हृदय-द्रावक चित्रण प्रस्तुत किया गया है। कृष्ण द्वारा चिन्तानिवारण का उपाय
१४ - इमं च णं कण्हे वासुदेवे ण्हाए जाव [कयबलिकम्मे कयकोउय-मंगल-पायच्छित्ते सव्वालंकार ] विभूसिए देवईए देवीए पायवंदए हव्वमागच्छइ। तए णं से कण्हे वासुदेवे देवई देविं पासइ, पासित्ता देवईए देवीए पायग्गहणं करेड़, करित्ता देवई देविं एवं वयासी
___अण्णया णं अम्मो! तुब्भे ममं पासित्ता हट्टतुट्ठा जाव [चित्तमाणंदिया पीइमणा परमसोमणस्सिया हरिसवस-विसप्पमाणहियया] भवह, किण्णं अम्मो! अज्ज तुब्भे ओहयमणसंकप्पा जाव [करयलपल्हत्थमुही अट्टज्झाणोवगया ] झियायह?
तए णं सा देवई देवी कण्हं वासुदेवं एवं वयासी – एवं खलु अहं पुत्ता! सरिसए जाव' नलकुब्बरसमाणे सत्त पुत्ते पयाया, नो चेव णं मए एगस्स वि बालत्तणे अणुभूए। तुमं पि य णं पुत्ता! छण्हं-छण्हं मासाणं मम अंतिय पायदए हव्वमागच्छसि। तं धण्णाओ णं ताओ अम्मयाओ जाव झियामि।
१. वर्ग 3 का सूत्र-५.
२. वर्ग 3 का सूत्र-१२