Book Title: Agam 08 Ang 08 Anantkrut Dashang Sutra Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni, Divyaprabhashreeji, Devendramuni, Ratanmuni, Kanhaiyalal Maharaj
Publisher: Agam Prakashan Samiti
View full book text
________________
तृतीय वर्ग]
[४५ देवकी देवी को आश्वासन
१५ - तए णं से हरिणेगमेसी कण्हं वासुदेवं एवं वयासी - होहिइ णं देवाणुप्पिया! तव देवलोयचुए सहोदरे कणीयसे भाउए। से णं उम्मुक्क जाव [बालभावे विण्णय-परिणयमेत्ते जोव्वणग] मणुपत्ते अरहओ अरिट्ठणेमिस्स अंतियं मुंडे जाव [ भवित्ता आगाराओ अणगारियं] पव्वइस्सइ। कण्हं वासुदेवं दोच्चं पि तच्चं पि एवं वदह, वदित्ता जामेव दिसं पाउब्भूए तामेव दिसं पडिगए।
तए णं से कण्हे वासुदेवे पोसहसालाओ पडिणिवत्तइ, पडिणिवत्तित्ता जेणेव देवई देवी तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता देवईए देवीए पायग्गहणं करेइ, करेत्ता एवं वयासी
होहिइ णं अम्मो! मम सहोदरे कणीयसे भाउए त्ति कटु देवइं देविं ताहिं इट्ठाहिं जाव [कंताहिं पियाहिं मण्णुणाहिं वग्गूहिं ] आसासेइ, आसासित्ता जामेव दिसं पाउन्भूए तामेव दिसं पडिगए।
__ तब हरिणैगमेषी देव श्रीकृष्ण वासुदेव से इस प्रकार बोला - "हे देवानुप्रिय! देवलोक का एक देव वहाँ का आयुष्य पूर्ण होने पर देवलोक से च्युत होकर आपके सहोदर छोटे भाई के रूप में जन्म लेगा और इस तरह आपका मनोरथ अवश्य पूर्ण होगा, पर वह बाल्यकाल बीतने पर, विज्ञ और परिणत होकर युवावस्था प्राप्त होने पर भगवान् श्री अरिष्टनेमि के पास मुण्डित होकर श्रमणदीक्षा ग्रहण करेगा।" श्रीकृष्ण वासुदेव को उस देव ने दूसरी बार, तीसरी बार भी यही कहा और यह कहने के पश्चात् जिस दिशा से आया था उसी में लौट गया।
इसके पश्चात् श्रीकृष्ण-वासुदेव पौषधशाला से निकले , निकलकर देवकी माता के पास आये, आकर देवकी देवी का चरण-वंदन किया, चरण-वंदन कर वे माता से इस प्रकार बोले
हे माता! मेरा एक सहोदर छोटा भाई होगा। अब आप चिंता न करें। आपकी इच्छा पूर्ण होगी। ऐसा कह करके उन्होंने देवकी माता को मधुर एवं इष्ट, कांत, प्रिय, मनोज्ञ वचनों द्वारा आश्वस्त किया। आश्वस्त करकें जिस दिशा में प्रादुर्भूत - प्रकट हुए थे उसी दिशा में लौट गये।
विवेचन - प्रसन्न हुआ हरिणैगमेषी देव श्रीकृष्ण को उनके सहोदर भाई होने का आश्वासन देता है परंतु साथ ही उसके दीक्षित हो जाने का सूचन भी करता है। श्रीकृष्ण माता देवकी के पास जाकर इस कार्य-सिद्धि की सूचना देते हैं। प्रस्तुत सूत्र में कृष्ण द्वारा देवकी देवी को आश्वासन देने का उल्लेख किया गया है। गजसुकुमार का जन्म
१६ - तए णं सा देवई देवी अण्णया कयाइं तंसि तारिसगंसि जाव [वासघरंसि अभितरओ संचित्तकम्मे, बाहिरओ दूमिय-घट्ठमढे, विचित्तउल्लोय-चिल्लियतले, मणि-रयणपणासियंधयारे, बहुसम-सुविभत्तदेसभाए, पंचवण्ण-सरस-सुरभिमुक्क-पुप्फपुंजोवयारकलिए, कालागुरुपवर-कुंदुरुक्कतुरुक्क-धूवमघमघंतगंधुद्धयाभिरामे, सुगंधिवरगंधिए, गंधवट्टिभूए, तंसि तारिसगंसि सयणिजसि सालिंगणवट्टिए, उभओविब्बोयणे, दुहओ उण्णए, मझे णय-गंभीरे, गंगा-पुलिण-वालुय-उद्दाल-सालिसए, उवचिय-खोमिय-दुगुल्लपट्ट पडिच्छायणे, सुविरइयरयत्ताणे, रत्तंसुय-संवुए, सुरम्मे, आइणग-रुय-बूर-णवणीय-तूलफासे, सुगंध-वरकुसुम