Book Title: Agam 08 Ang 08 Anantkrut Dashang Sutra Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni, Divyaprabhashreeji, Devendramuni, Ratanmuni, Kanhaiyalal Maharaj
Publisher: Agam Prakashan Samiti

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Page 87
________________ [अन्तकृद्दशा चुण्ण-सयणोवयारकलिए, अद्धरत्तकालसमयंसि सुत्त-जागरा ओहीरमाणी ओहीरमाणी अयमेयारूवं ओरालं, कल्लाणं, सिवं, धण्णं, मंगल्लं सस्सिरियं महासुविणं पासित्ता णं पडिबुद्धा। हार- रयय-खीरसागर-ससंककिरण-दगरय-रययमहसिल-पंडुरतरोरुरमणिज्जपेच्छणिज्जं, थिरलट्ठ-पउट्ठ-वट्ट-पीवर-सुसिलिट्ठविसिट्ठ-तिक्खदाढाविडंबियमुहं, परिकम्मियजच्चकमलकोमल-माइअसोभंतलट्ठउठें, रत्तुप्पलपत्तमउअसुकुमालतालुजीहं, मूसगयपवरकणगतावियआवत्तायंत-व-तडिविमलसरिसणयणं, विसालपीवरोळं, पडिपुण्णविपुल-खंधं, मिउसिविसयसुहुम-लक्खण-पसत्थविच्छिण्ण-केसरसडोवसोभियं, ऊसिय-सुणिम्मिय-सुजायअप्फोडियलंगूलं, सोमं, सोमाकारं, लीलायंतं, जंभायंतं, णहयलाओ ओवयमाणं णिययवयणमडवयंतं], सीहं सविणे पासित्ता पडिबद्धा। जाव [तए णं सा देवई देवी अयमेयारूवं ओरालं जाव-सस्सिरियं महासुविणं पासित्ता णं पडिबद्धा समाणी हट्ठतट्ठ जाव हियया धाराहयकलंबपुण्फगं पिव समूसियरोमकूवा तं सुविणं ओगिण्हइ, ओगिण्हित्ता सयणिज्जाओ अब्भुढेइ, अब्भुट्ठित्ता अतुरियमचवलमसंभताए अविलंबियाए रायहंससरिसीए गईए जेणेव वसुदेवस्स रण्णो सयणिज्जे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता वसुदेवरायं ताहिं, इट्ठाहिं कंताहि, पियाहिं, मणुण्णाहिं मणामाहिं ओरालाहिं कल्लाणाहिं सिवाहिं धण्णाहिं मंगल्लाहिं सस्सिरीयाहिं मिय-महुर-मंजुलाहिं गिराहिं संलवमाणी संलवमाणी पडिबोहेइ, पडिबोहित्ता वसुदेवेणं अब्भणुण्णाया समाणी णाणामणिरयणभत्तिचित्तंसि भद्दासणंसि णिसीयइ णिसीइत्ता आसत्था वीसत्था सुहासणवरगया वसुदेवं रायं ताहिंइट्ठाहिं कंताहिं जाव-संलवमाणी संलवमाणी एवं वयासी एवं खलु अहं देवाणुप्पिया! अज्ज तंसि तारिसगंसि सयणिजंसि सालिंगण० तं चेव जाव णियगवयणमइवयंतं सीहं सुविणे पासित्ता णं पडिबुद्धा, तण्णं देवाणुप्पिया! एयस्स ओरालस्स जाव महासविणस्स के मण्णे कल्लाणे फलवित्तिविसेसे भविस्सड? तए णं से वसुदेवे राया देवईए देवीए अंतियं एयमलैं सोच्चा णिसम्म हट्ठतुट्ठ० जाव हयहियए धाराहयणीवसुरभिकुसुमचंचुमालइयतणुय-ऊसवियरोमकूवे तं सुविणं ओगिण्हइ, ओगिण्हित्ता ईहं पविसइ, ईहं पविसित्ता अप्पणो साभाविएणं मइपुव्वएणं बुद्धिविण्णाणेणं तस्स सुविणस्स अत्थोग्गहणं करेइ तस्स० देवइं देविं ताहिं इट्ठाहिं कंताहिं जाव मंगल्लाहिं मिय-महुर-सस्सिरि० संलवमाणे संलवमाणे एवं वयासी ओराले णं तुमे देवी! सुविणे दिढे, कल्लाणे णं तुमे जाव सस्सिरीए णं तुमे देवी! सुविणे दिढे, आरोग्ग-तुट्ठिदीहाउ-कल्लाण-मंगल्लकारए णं तुमे देवी! सुविणे दिढे, अत्थलाभो देवाणुप्पिए! भोगलाभो देवाणुप्पिए! पुत्तलाभो देवाणुप्पिए! रज्जलाभो देवाणुप्पिए! एवं खलु तुमं देवाणुप्पिए! णवण्हं मासाणं बहुपडिपुण्णाणं अद्धट्ठमाणराइंदियाणं विइक्कंताणं अम्हं कुलकेउं, कुलदीवं, कुलपव्वयं, कुलवडेंसयं, कुलतिलगं कुलकित्तिकरं, कुलणंदिकरं, कुलजसकरं, कुलाधारं, कुलापायवं, कुलविवद्धणकर, सुकुमालपाणि-पायं, अहीणपडिपुण्णपंचिंदियसरीरं, जाव ससिसोमाकारं, कंतं, पियदंसणं, सुरूवं, देवकुमारसमप्पभं दारगं पयाहिसि। से वि य णं दारए उम्मुक्कबालभावे विण्णायपरिणयमित्ते जोवणगमणुपत्ते सूरे वीरे विक्कंते वित्थिण्ण-विउल-बल-वाहणे रज्जवई राया भविस्सइ। तं उराले णं तुमे जाव सुमिणे

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