Book Title: Agam 08 Ang 08 Anantkrut Dashang Sutra Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni, Divyaprabhashreeji, Devendramuni, Ratanmuni, Kanhaiyalal Maharaj
Publisher: Agam Prakashan Samiti

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Page 83
________________ [ अन्तकृद्दशा तणं से कहे वासुदेवे देवई देविं एवं वयासी मा णं तुब्भे अम्मो ! ओहयमणसंकप्पा जाव' झियायह। अहण्णं तहा जतिस्सामि जहा णं ममं सहोदरे कणीयसे भाउए भविस्सति त्ति कट्टु देव देविं ताहिं इट्ठाहिं वग्गूहिं समासासेइ । तओ पडिणिक्खमइ, पडिणिक्खमित्ता जेणेव पोसहसाला तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता जहा अभओ । नवरं हरिणेगमेसिस्स अट्ठमभत्तं पगेण्हइ जाव [ पगेण्हइत्ता पोसहसालाए पोसहिए बंभयारिस्स उम्मुक्कमणिसुवण्णस्स ववगयमालावन्नगविलेवणस्स निक्खित्तसत्थमुसलस्स एगस्स अबीयस्स दब्भसंथारोवगयस्स अट्टमभत्तं परिगिण्हित्ता हरिणेगमेसिं देवं मणसि करेमाणे करेमाणे चिट्ठा । ४२] तए णं तस्स कण्हस्स वासुदेवस्स अट्ठमभत्ते परिणममाणे हरिणेगमेसिस्स देवस्स आसणं चलइ । तए णं हरिणेगमेसी देवें आसणं चलियं पासइ, पासित्ता, ओहिं पउंजति । तए णं तस्स हरिणेगमेसिस्स देवस्स अयमेयारूवे अज्झत्थिए चिंतिए पत्थिए मणोगए संकप्पे समुप्पज्जित्था - एवं खलु जंबुद्दीवे दीवे भारहे वासे बारवई नयरीए पोसहसालाए कण्हे नामं वासुदेवे अट्ठमभत्तं परिगिण्हित्ता णं मम मणसि करेमाणे करेमाणे चिट्ठइ । तं सेयं खलु मम कण्हस्स वासुदेवस्स अंतिए पाउब्भवित्तए । एवं संपेहेइ, संपेहित्ता उत्तरपुरच्छिमं दिसीभागं अवक्कमति, अवक्कमित्ता विउव्वियसमुग्धाएणं समोहणति, समोहणित्ता संखेज्जाई जोयणाई दंडं निसिर । तं जहा (१) रयणाणं, (२) वइराणं, (३) वेरुलियाणं, (४) लोहियक्खाणं, (५) मसारगल्लाणं, ( ६ ) हंसगब्भाणं, (७) पुलगाणं, (८) सोगंधियाणं (९) जोइरसाणं, (१०) अंकाणं, (११) अंजणाणं, (१२) रययाणं, (१३) जायरूवाणं, (१४) अंजणपुलयाणं, ( १५ ) फलिहाणं, (१६) रिट्ठाणं अहाबायरे पोग्गले परिसाडेड़, परिसाडित्ता अहासुहुमे पोग्गले परिगिण्हत्ति, परिगिण्हइत्ता कण्हमणुकंपमाणे देवे तओ विमाणवरपुण्डरियाओ रयणुत्तमाओ धरणियलगमणतुरिय-संजणितगयणपयारो वाघुण्ण्तिविमलकणगपयरगवडिं सगमउडुक्कडाडोवदंसिणिज्जो, अणेगमणि - कणग-रयण- पहकरपरिमंडितभत्तिचित्तविणिउत्तमगुणजणियहरिसे, पेंखोलमाणवरललितकुंडलुज्ज लियवयणगुणजनितसोमरूवे, उदितो विव कोमुदीनिसाए सणिच्छरंगारउज्जलियमज्झभागत्थे णयणाणंदो, सरयचंदो, दिव्वोसहिपज्जलुज्जलियदंसणाभिरामो उउलच्छि समत्तजायसोहे पइट्ठगंधुद्ध्याभिरामो मेरुरिव नगवरो, विगुव्वियविचित्तवेसे, दीवसमुद्दाणं असंखपरिमाणनामधेज्जाणं मज्झंकारेणं वीइयवमाणो, उज्जोयंतो पभाए विमलाए जीवलोगं बारावई पुरवरं च कण्हस्स य तस्स पासं उवयइ दिव्वरूवधारी । तए णं से देवे अंतलिक्खपडिवन्ने दसद्धवन्नाई सखिंखिणियाइं पवरवत्थाई परिहिए( एक्को ताव एसो गमो अण्णे वि गमो - ) तओ उक्किट्ठाए तुरियाए चवलाए चंडाए सीहाए उद्धुयाए जइणाए छेयाए दिव्वाए देवगतीए जेणामेव बारवईए नयरे पोसहसालाए कण्हे वासुदेवे तेणामेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता अंतलिक्खपडिवन्ने दसद्धवन्नाइं सखिंखिणियाइं पवरवत्थाई परिहिए- कण्हं वासुदेवं एवं वयासी "अहं णं देवाणुप्पिया! हरिणेगमेसी देवे महिड्डिए, जं णं तुमं पोसहसालाए अट्ठमभत्तं पगिरिहत्ता णं ममं मणसि करेमाणे चिट्ठसि तं एस णं देवाणुप्पिया! अहं इहं हव्वमागए । ३. इसी सूत्र में ऊपर आ गया है।

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