Book Title: Agam 08 Ang 08 Anantkrut Dashang Sutra Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni, Divyaprabhashreeji, Devendramuni, Ratanmuni, Kanhaiyalal Maharaj
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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[अन्तकृद्दशा पडिवूहं (४८) चारं (४९) पडिचारं (५०) चक्कवूहं (५१) गरुलवूहं (५२) सगडवूहं (५३) जुद्धं (५४) निजुद्धं (५५) जुद्धातिजुद्धं (५६) अट्ठिजुद्धं (५७) मुट्ठिजुद्धं (५८) बाहुजुद्धं (५९) लयाजुद्धं (६०) ईसत्थं (६१) छरुप्पवायं (६२) धणुव्वेयं (६३) हिरन्नपागं (६४) सवन्नपागं (६५) सत्तखेडं (६६)वखेडं (६७) नालियाखेडं (६८) पतच्छेज्ज (६९) कटगछेज्ज (७०) सजीवं (७१) निज्जीवं (७२) सउणिरुअमिति।
तए णं से कलायरिए अणीयसं कुमारं लेहाइयाओ गणियप्पहाणाओ सउणिरुअपज्जवसाणाओ बावत्तरिं कलाओ सुत्तओ य अत्थओ य करणओ य सिहावेइ, सिक्खावेइ, सिहावेत्ता सिक्खावेत्ता अम्मपिऊणं उवणेइ।
तए णं अणीयसकुमारस्स अम्मापियरो तं कलायरियं मधुरेहिं वयणेहिं विपुलेणं वत्थगंध-मल्लालंकारेणं सक्कारेंति, सम्माणेति, सक्कारित्ता सम्माणित्ता विपुलं जीवियारिहं पीइदाणं दलयंति। दलइत्ता पडिविसज्जेंति।
तए णं से अणीयसे कुमारे बावत्तरिकलापंडिए णवंगसुत्तपडिबोहिए अट्ठारसविहिप्पगारदेसीभासाविसारए गीइरई गंधव्वनट्टकुसले हयजोही गयजोही रहजोही बाहुजोही बाहुप्पमद्दी] अलं भोगसमत्थे जाए यावि होत्था।
उस नाग गाथापति का पुत्र सुलसा भार्या का आत्मज अनीयस नामक कुमार था। (वह) सुकोमल था यावत् उसकी पाँचों इन्द्रियाँ पूर्ण एवं निर्दोष थीं। उसका शरीर विद्या, धन और प्रभुत्व आदि के सूचक सामुद्रिक लक्षणों, मस्सा-तिलादि व्यंजनों और विनय, सुशीलता आदि गुणों से युक्त था। मान, उन्मान और प्रमाण से परिपूर्ण एवं अंगोपांग-गत सौन्दर्य से परिपूर्ण था। चन्द्रमा के समान सौम्य (शान्त), कान्त, मनोहर, प्रियदर्शन और पाँच धायमाताओं से परिरक्षित वह दृढप्रतिज्ञ कुमार की तरह यावत् १क्षीरधात्री- दूध पिलाने वाली धाय २-मंडनधात्री-वस्त्राभूषण पहनाने वाली धाय, ३-मज्जनधात्रीस्नान कराने वाली धाय, ४-क्रीडापनधात्री-खेल खिलाने वाली धाय और ५ - अंकधात्री-गोद में लेने वाली धाय; इनके अतिरिक्त वह अनीयस कुमार अन्यान्य कुब्जा (कुबड़ी), चिलातिका (चिलातकिरात नामक अनार्य देश में उत्पन्न), वामन (बौनी), वडभी (बडे पेट वाली), बर्बरी (बर्बर देश में उत्पन्न), बकुश देश की, योनक देश की, पल्हविक देश की, ईसिनिक, धौरुकिन, ल्हासक देश की, लकुस देश की, द्रविड देश की, सिंहल देश की, अरब देश की, पुलिंद देश की, पक्कण देश की, वहल देश की, मुरुंड देश की, शबर देश की, पारस देश की, इस प्रकार नाना देशों की परदेश-अपने देश से भिन्न राजगृह को सुशोभित करने वाली, इंगित (मुखादि की चेष्टा), चिन्तित (मानसिक विचार) और प्रार्थित (अभिलषित) को जानने वाली, अपने-अपने देश के वेष को धारण करने वाली, निपूणों में भी अतिनिपुण , विनययुक्त दासियों के द्वारा तथा स्वदेशीय दासियों द्वारा और वर्षधरों (प्रयोग द्वारा नपुंसक बनाये हुए पुरुषों), कंचुकियों और महत्तरकों (अन्तःपुर के कार्य की चिन्ता रखने वालों) के समुदाय से घिरा रहने लगा। वह एक के हाथ से दूसरे के हाथ में जाता, एक की गोद से दूसरे की गोद में जाता, गागा कर बहलाया जाता, उंगली पकड़ कर चलाया जाता, क्रीड़ा आदि से लालन-पालन किया जाता एवं रमणीय मणिजटित फर्श पर चलाया जाता हुआ वायुरहित और व्याघातरहित) गिरिगुफा में स्थित चम्पक वृक्ष के समान सुखपूर्वक बढ़ने लगा।
तत्पश्चात् अनीयस कुमार को आठ वर्ष से कुछ अधिक उम्र वाला हुआ जानकर माता-पिता ने